गीता के उपदेश  निम्नलिखित हैं:

1. कर्मयोग: भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि हमें अपने कर्मों को करने का ध्यान करना चाहिए और नतीजों के लिए नहीं. वह कहते हैं कि हमारा कर्म हमारा धर्म होता है और हमें निष्काम कर्म करना चाहिए, यानी कर्मों को फल की आशा के बिना करना चाहिए.

2. ज्ञानयोग: भगवान कृष्ण कहते हैं कि असली ज्ञान और सत्य को प्राप्त करने के लिए आत्मा की अनुभूति आवश्यक है. वह कहते हैं कि आत्मा हमारे शरीर और मन से अलग है और इसे जानने के लिए हमें ध्यान और मेधा बढ़ाने की आवश्यकता होती है.

3. भक्तियोग: गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि भक्ति और प्रेम के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है. भक्ति के माध्यम से हम अपने अहंकार को छोड़कर ईश्वर के प्रति समर्पण करते हैं और अनंत शांति और सुख का अनुभव करते हैं.

4. निष्काम कर्म: गीता में कहा गया है कि हमें कर्म करने का ध्यान रखना चाहिए और फल की चिंता करने

 की आवश्यकता नहीं होती है. वह कहते हैं कि कर्म अपने स्वभाविक कर्मभूमि में किया जाना चाहिए और कर्मों को ईश्वर के लिए समर्पित करना चाहिए.

5. आत्मा का अद्वैतवाद: भगवान कृष्ण गीता में बताते हैं कि सभी जीव आत्मा में समान हैं और यह आत्मा अद्वैत (अनन्य) है. वह कहते हैं कि आत्मा अविनाशी है, न तो यह जन्म मरण से प्रभावित होती है और न ही इसे किसी कार्य में लिप्त किया जा सकता है.

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