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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष कब से शुरू हो रहा है? जानें तारीख और 16 श्राद्ध की तिथियां

Mahakal Aug 23, 2024 0

Table of Contents

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  • पितृ पक्ष का महत्व
  • Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष कब से शुरू हो रहा है? पितृ पक्ष 2024 की तारीखें
  • 16 श्राद्ध की तिथियां
  • पितृ पक्ष के अनुष्ठान
  • पितृ पक्ष में किन बातों का ध्यान रखें
  • पितृ पक्ष के दौरान की जाने वाली पूजा
  • पितृ पक्ष के दौरान कथाएं और पौराणिक कथाएं
  • पितृ पक्ष का समापन और विशेष दिन

पितृ पक्ष का महत्व

पितृ पक्ष सनातन धर्म की एक महत्वपूर्ण अवधि है, जिसे पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए समर्पित किया जाता है। यह 16 दिन की अवधि होती है, जिसमें श्रद्धालु अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा को श्रद्धांजलि और तर्पण अर्पित करते हैं। इस समय का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है और यह माना जाता है कि इस अवधि में किए गए कर्म और पूजा विशेष फलदायी होते हैं।

धर्मशास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने से पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनकी आत्मा शांत और संतुष्ट होती है। श्राद्ध से जुड़ी परंपराएं और अनुष्ठान किसी भी मनुष्य के चरित्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं, जो उसे अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करने का अवसर देती हैं।

समाज में भी पितृ पक्ष का एक विशेष स्थान है। यह एक ऐसा समय है जब लोग अपने परिवार के इतिहास और परंपराओं को याद करते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, जो परिवार की एकता और अखंडता को मजबूत बनाती है। पितृ पक्ष के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों में शामिल होते हैं: पिंडदान, तर्पण और हवन, जो अपने आप में धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं।

पितृ पक्ष का उत्सव कर्ण, रामायण, महाभारत और अन्य प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेखित है, जो इसकी प्राचीनता और महत्व को दर्शाता है। इन ग्रंथों में कहा गया है कि उचित समय पर, विधिपूर्वक किए गए श्राद्ध कर्म से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। पितृ पक्ष का न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है, जो समाज के मूल्यों और परंपराओं को संरक्षित करने में सहायक होता है।

Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष कब से शुरू हो रहा है? पितृ पक्ष 2024 की तारीखें

पितृ पक्ष 2024 की शुरुआत 17 सितंबर से होगी और यह 2 अक्टूबर को समाप्त होगा। इन तिथियों का निर्धारण भारतीय पंचांग के अनुसार किया जाता है, जो चन्द्रमा की गति और स्थिति पर आधारित होता है। श्राद्ध पक्ष के ये 16 दिन बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जिसमें पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

पितृ पक्ष का समय हर साल बदलता है, और इसका मुख्य कारण चन्द्रमा की दशा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है। यह अवधि इसलिए मानी जाती है क्योंकि इस अवधि में सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा की स्थिति पूर्वजों की आत्मा की अमरत्व यात्रा के लिए अनुकूल होती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पितृ पक्ष की तिथियों का एक आधार है। भारतीय ज्योतिष विद्या के अनुसार, इस समय सूर्य कन्या राशि में होता है, जो पितरों की आत्मा की शांति के लिए आदर्श दशा मानी जाती है। इसके अलावा, भाद्रपद और अश्विन माह में मौसम में भी बदलाव आता है, जिसे प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

2024 में पितृ पक्ष की तिथियां इस प्रकार हैं: 17 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध से शुरुआत होगी और 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगी। इन 16 दिनों में हर दिन भिन्न प्रकार के श्राद्ध और तर्पण अनुष्ठान होते हैं, जिनका पालन करना धर्मग्रंथों में अनिवार्य माना गया है।

इन तिथियों के अंदर, धार्मिक विधियों का पालन कर अपने पितरों की आत्मा की शांति और समृद्धि के लिए श्राद्ध और तर्पण करें। पितृ पक्ष के महत्वपूर्ण उपयोगिता और वैज्ञानिक तर्क इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवधारणा बनाते हैं।

16 श्राद्ध की तिथियां

पितृ पक्ष के 16 दिनों में हर दिन का विशिष्ट महत्व होता है, जिसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। हर दिन को एक तिथि के रूप में मनाया जाता है और इन तिथियों का निर्धारित क्रम होता है। सबसे पहले प्रतिपदा श्राद्ध से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है और अमावस्या श्राद्ध पर इसका समापन होता है।

प्रतिपदा श्राद्ध का पहला दिन सामान्यतः उन पूर्वजों के लिए होता है जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि पर हुई हो। इसके बाद द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अंत में पितृ अमावस्या श्राद्ध मनाया जाता है।

हर तिथि का अपना अलग महत्व होता है। जैसे नवमी श्राद्ध को मातृ नवमी के रूप में मनाया जाता है, जो उन माताओं के लिए होती है जिनका देहांत इस तिथि पर हुआ हो। चतुर्दशी श्राद्ध उन लोगों के लिए होता है जिनकी अकाल मृत्यु हो चुकी हो। पितृ पक्ष की अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है और यह विशेष तौर पर उन पूर्वजों के लिए समर्पित होती है जिनका श्राद्ध विधि पूर्वक नहीं किया गया हो या जिनका तर्पण किसी कारणवश बाकी रह गया हो।

अनुष्ठानों में तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन प्रमुख होते हैं। तर्पण में जल अर्पण करना, पिंडदान में विशेष प्रकार के भोजन एवं अन्य सामग्री का अर्पण और ब्राह्मण भोज में ब्राह्मणों को भोजन कराना शामिल है, जिससे पितरों को संतुष्टि प्राप्त होती है। हर तिथि के विशेष अनुष्ठान एवं पवित्र विधियों को ध्यानपूर्वक और श्रद्धा सहित संपन्न करना आवश्यक है, जिससे पितरों की आत्मा को शांति मिल सके और पूरे परिवार को उनकी आशीर्वाद प्राप्त हो सके।

पितृ पक्ष के अनुष्ठान

पितृ पक्ष हिंदू धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक समय है। इस दौरान विभिन्न अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना और उनकी आत्मा के उद्धार के लिए प्रार्थना करना होता है।

तर्पण अनुष्ठान पितृ पक्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें जल, कच्चे दूध और काले तिल का प्रयोग कर पितरों की तृप्ति के लिए अर्पण किया जाता है। यह अनुष्ठान आमतौर पर गंगा नदी या किसी पवित्र जल स्रोत के किनारे किया जाता है, लेकिन इसे घर पर भी किया जा सकता है। तर्पण में विशेष मंत्रों का उच्चारण और पूजा की जाती है, जिससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

पिंड दान पितृ पक्ष का एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसमें चावल, जौ, तिल और चंदन का प्रयोग कर पिंड बनाए जाते हैं और इन्हें पितरों के निमित्त अर्पित किया जाता है। यह अनुष्ठान आमतौर पर किसी पवित्र स्थल जैसे गंगा तट पर या व्यक्ति के घर के निकट किया जाता है। पिंड दान करने का उद्देश्य पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त कराने में मदद करना होता है।

ब्राह्मण भोज पितृ पक्ष के दौरान किया जाने वाला एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसमें ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दान देना शामिल है। यह अनुष्ठान न केवल पितरों की आत्मा के उद्धार के लिए होता है, बल्कि समाधि या स्मरणोत्सव के रूप में भी माना जाता है। ब्राह्मण भोज में सात्विक और पौष्टिक भोजन का वितरण किया जाता है, जिसे एक पुण्य कार्य माना जाता है। इसके अलावा, इस अनुष्ठान के माध्यम से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों की सहायता भी की जाती है।

इन अनुष्ठानों के माध्यम से न सिर्फ पारिवारिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संजोया जाता है, बल्कि पूर्वजों की आत्मा की शांति और प्रसन्नता के लिए प्रार्थना की जाती है। यह धार्मिक समय पूरे परिवार के सदस्यों को एकजुट करने और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पितृ पक्ष में किन बातों का ध्यान रखें

पितृ पक्ष हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण काल है, जिसमें पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इस समयावधि में कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखनी आवश्यक हैं ताकि पितरों को सही तरीके से श्रद्धांजलि दी जा सके।

सबसे पहले, इस अवधि में विशेष प्रकार का भोजन ही तैयार और ग्रहण किया जाता है। कहा जाता है कि पितरों के समीप ऐसा भोज्य पदार्थ रखना चाहिए, जो सात्विक और शुद्ध हो। इसमें अन्नदान, दूध, घी, फल, और बिना प्याज-लहसुन के बने भोजन को प्राथमिकता दी जाती है। इसके साथ ही, भोजन पूरी श्रद्धा और स्वच्छता के साथ तैयार किया जाना चाहिए।

आचरण के संदर्भ में, पितृ पक्ष के दौरान अत्यधिक सादगी और संकल्प के साथ रहना चाहिए। इस दौरान नकारात्मक विचार, क्रोध, और किसी प्रकार की अहिंसा से दूर रहना उचित माना जाता है। इस तरह का आचरण हमारे पितरों की आत्मा को शांति और संतोष प्रदान करता है।

घरेलू नियमों के अनुसार, इस अवधि में घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पवित्रता बनाए रखने के लिए नियमित रूप से घर में गंगा जल का छिड़काव करें और तुलसी के पौधे का पूजन करें। घर के बुजुर्गों और शुभ चिंतकों का आदर-सम्मान करना और उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना भी आवश्यक है।

इस तरह के सत्कार्यों और सदाचरण से पितरों को तृप्ति मिलती है और उनकी कृपा हमारे जीवन पर बनी रहती है। पितृ पक्ष का सार यही है कि हम अपने पूर्वजों का सम्मान करें और उनके लिए प्रेजार्थना करें ताकि हमारा परिवार सुख-समृद्धि से ओतप्रोत रहे।

पितृ पक्ष के दौरान की जाने वाली पूजा

पितृ पक्ष के दौरान विशेष पूजा विधियों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति और प्रसन्नता के लिए श्रद्धा और नियम से पूजा की जाती है। पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण जैसी विधियों का पालन कर हम अपने पितरों को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। यह माना जाता है कि इन दिनों में पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं, इसलिए उन्हें संतुष्ट करना आवश्यक है।

सबसे पहले, उपयुक्त समय पर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना आवश्यक होता है। इसके बाद पूजा स्थल पर धूप, दीप, और गंगाजल का छिड़काव किया जाता है। तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्त्व होता है। तर्पण करते समय तिल, जल, और कुश का उपयोग किया जाता है। उसके पश्चात, पिंडदान में चावल और जौ के पकवान अर्पित किए जाते हैं। इनका अर्पण करने से पितर तृप्त होते हैं और परिवार को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

मंत्रों का उच्चारण भी पितृ पक्ष के दौरान महत्वपूर्ण होता है। निम्नलिखित मंत्रों का प्रयोग किया जाता है:

“ॐ पितृभ्यो नमः”

“ॐ पितृ गणय नमः”

इसके अलावा श्राद्ध के समय ब्राह्मण भोज करवाना और गरीबों को अन्नदान करना भी शुभ माना जाता है। यह विश्वास है कि इन कार्यों से पितृ तृप्त होते हैं और वंशजों की हर प्रकार की बाधाओं का नाश होता है।

इस प्रकार, पितृ पक्ष के दौरान की जाने वाली पूजा विधियाँ, मंत्र उच्चारण और दान-पुण्य की परंपरा, पितरों की शांति और प्रसन्नता के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इन कर्मों को श्रद्धा और आस्था से करना न केवल परंपरा का पालन है, बल्कि संतुलित जीवन के लिए भी एक महत्वपूर्ण उपाय माना जाता है।

पितृ पक्ष के दौरान कथाएं और पौराणिक कथाएं

पितृ पक्ष, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण समयावधि है, जिसके दौरान पूर्वजों की आत्माओं को स्मरण और सम्मानित किया जाता है। इस अवधि से संबंधित अनेक कथाएं और पौराणिक घटनाएँ हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित हैं, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं।

प्रसिद्ध कथा के अनुसार, महाभारत के युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में, जब भीष्म पितामह वाणों की शय्या पर लेटे हुए थे, उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा कि उनके पूर्वजों को पितृ पक्ष के दौरान उचित तर्पण कैसे प्राप्त होगा। तब श्री कृष्ण ने भीष्म को यह बताया कि इस काल के दौरान उचित विधि से श्राद्ध करने से पितृगण तृप्त और संतुष्ट होते हैं।

एक और प्राचीन कथा में, राजा हरिश्चंद्र की कहानी का उल्लेख होता है। तपस्या और सत्य के पालन के दौरान उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति खो दी थी। पितृ पक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध के कारण उनके पूर्वजों की आत्माओं को मोक्ष प्राप्त हुआ और इस कारण राजा हरिश्चंद्र को भी उनका राज्य और परिवार पुनः प्राप्त हुआ।

रामायण की एक कथा में भी पितृ पक्ष का महत्व रेखांकित किया गया है। श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने से पहले अपने पिता दशरथ और पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण किया था। इस धर्मिक अनुष्ठान को करने से उन्हें अपनी सभी बाधाओं को पार करने में सहायता मिली और वे ऊँचाईयों को प्राप्त कर सके।

इन कथाओं और पौराणिक घटनाओं के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि पितृ पक्ष का समय केवल धार्मिक अनुष्ठानों का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह मानवता और पूर्वजों के प्रति सम्मान का भी प्रतीक है। यह समय हमें अपने पूर्वजों की दया और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है, जो हमारे जीवन को सन्मार्ग की ओर ले जाने में सहायक होता है।

पितृ पक्ष का समापन और विशेष दिन

पितृ पक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या के दिन होता है, जिसे महालया अमावस्या भी कहा जाता है। पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध कर्म का यह अंतिम दिन है और इसका सभी पितरों के लिए विशिष्ट महत्व है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजन, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। यह दिन उन समस्त पितरों को श्रद्धांजलि देने का समय है जो अब तक नहीं पाए गए होते हैं या जिनका श्राद्ध विभिन्न कारणों से नहीं हो पाया होता है।

सर्वपितृ अमावस्या के साथ-साथ महालया अमावस्या का भी विशेष महत्व है। इसे पिशाच मोचक अमावस्या भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन किए गए कर्म से पितृ दोष और पिशाच दोष का निवारण होता है। भारतीय संस्कृति में यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे पितरों का तर्पण करने का सर्वोत्तम समय समझा जाता है।

इस दिन विशेष रूप से गंगा नदी या किसी पवित्र जलाशय में स्नान करके पिंडदान किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने और पितरों के लिए श्राद्ध करने से उन्हें तृप्ति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इस त्योहार के दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा, दान और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।

महालया अमावस्या का आध्यात्मिक महत्व भी है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना का शुभारंभ भी होता है, जो अगले नौ दिनों तक दुर्गा पूजा के रूप में जारी रहता है। इस प्रकार, पितृ पक्ष का समापन न केवल पितरों की श्रद्धांजलि का समय होता है, बल्कि यह हिंदू धर्म में आने वाले प्रमुख त्योहारों की तैयारी के रूप में भी देखा जाता है।


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