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धार्मिक पर्यटन

भारत के 12 ज्योतिर्लिंग: नाम और स्थान

mahakaltemple.com Jun 14, 2024 0

ज्योतिर्लिंग का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व असीमित है। हिंदू धर्म में, ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव के प्रमुख रूपों में से एक माना जाता है। यह दिव्य प्रतीक भगवान शिव की अनंत ज्योति का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका अर्थ है ‘प्रकाश स्तंभ’। हर ज्योतिर्लिंग का एक विशिष्ट स्थान और पौराणिक कथा है, जो इसे अद्वितीय और पवित्र बनाती है।

भगवान शिव की उपासना का यह रूप अति प्राचीन है और इसे वेदों और पुराणों में भी उल्लेखित किया गया है। यह माना जाता है कि ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि और सुख का आगमन होता है। यह भी कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ज्योतिर्लिंग की पूजा के पीछे कई पौराणिक कथाएँ भी प्रचलित हैं। उदाहरण के लिए, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, चंद्रमा ने भगवान शिव की उपासना की थी और उन्हें वरदान स्वरूप ज्योतिर्लिंग प्राप्त हुआ। इसी प्रकार, काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, भगवान शिव ने काशी नगरी को अपनी स्थायी निवास स्थान के रूप में चुना था।

इन पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के कारण, ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखते हैं। भारत के विभिन्न कोनों में स्थित ये 12 ज्योतिर्लिंग, जैसे सोमनाथ (गुजरात), महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश), और रामेश्वरम (तमिलनाडु), न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन स्थानों पर हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं, जो इस विश्वास के साथ आते हैं कि भगवान शिव की कृपा से उनके जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होगा।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जो गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है, भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला और सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग का उल्लेख प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है और इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अपार है। सोमनाथ मंदिर को ‘प्रभास क्षेत्र’ के नाम से भी जाना जाता है और यह सागर के किनारे स्थित है, जिससे इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है।

सोमनाथ मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और यह कई बार ध्वस्त और पुनर्निर्मित किया गया है। वर्तमान में जो मंदिर खड़ा है, वह 1951 में सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से पुनर्निर्मित किया गया था। यह मंदिर चालुक्य शैली की स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर की मुख्य संरचना को देखकर ऐसा लगता है जैसे यह समुद्र से उभर कर आया हो।

मंदिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना विशेष अनुष्ठानों के साथ की जाती है। यहाँ की आरती और भस्म आरती का विशेष महत्व है, जिसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त, महाशिवरात्रि और श्रावण मास के दौरान यहाँ विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं, जो भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। यहाँ के दर्शन मात्र से भक्तों को अद्वितीय आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का धार्मिक, ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है।

Table of Contents

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  • मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश
  • महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश
  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश
  • वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड
  • भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र
  • काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारत के प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित है। यह पवित्र स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है। श्रीशैलम का यह मंदिर शिव और शक्ति के संयुक्त रूप को समर्पित है, जहां भगवान शिव को मल्लिकार्जुन और देवी पार्वती को भ्रामरंबा के रूप में पूजा जाता है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना के पीछे अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, यह स्थल भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय और गणेश के बीच हुए एक प्रतियोगिता का परिणाम है। कार्तिकेय जब नाराज होकर दक्षिण दिशा की ओर चले गए, तब भगवान शिव और देवी पार्वती उन्हें मनाने श्रीशैलम पहुंचे। इसी वजह से इस स्थल को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।

मंदिर में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन होता है, जिसमें प्रमुख रूप से शिवरात्रि, नवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा शामिल हैं। शिवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा और अभिषेक का आयोजन किया जाता है, जो भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा, यहां भ्रामरंबा देवी की पूजा भी अत्यंत श्रद्धा के साथ की जाती है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की यात्रा न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करती है, बल्कि यह स्थल पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। मंदिर की वास्तुकला और आसपास के प्राकृतिक दृश्यों को देखने के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक यहां आते हैं। श्रीशैलम का यह मंदिर भारतीय धार्मिक परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण अंग है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है, भगवान शिव के बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग की विशेषता यह है कि इसे भगवान शिव का भयानक रूप माना जाता है। महाकालेश्वर मंदिर की स्थापत्य कला अद्वितीय है और यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में किया गया था और इसकी स्थापत्य शैली में मालवा की विशिष्टता दिखाई देती है। इस मंदिर की संरचना में कई मंडप और विशाल गर्भगृह शामिल हैं। गर्भगृह के भीतर स्थित महाकालेश्वर शिवलिंग को देखने और पूजन करने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। मंदिर के चारों ओर विस्तृत परिसर है, जिसमें विभिन्न धार्मिक गतिविधियाँ और समारोह आयोजित किए जाते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। इसे पवित्र और मोक्षदायी स्थल माना जाता है। इस मंदिर में प्रतिदिन होने वाली भस्म आरती अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसमें शिवलिंग को भस्म से स्नान कराया जाता है। इस आरती में शामिल होना भक्तों के लिए एक विशेष अनुभव होता है।

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर हजारों भक्त यहां इकट्ठा होते हैं और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। इसके अलावा श्रावण मास में भी यहां विशेष आयोजन होते हैं, जब शिवभक्त बड़ी संख्या में मंदिर में दर्शन करने आते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम और स्थान उज्जैन में स्थित होने के कारण यह स्थल धार्मिक और पर्यटन दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक शांति का केंद्र है, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण भी है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है और यह नर्मदा नदी के किनारे पर स्थित है। इस मंदिर का नाम ‘ओंकारेश्वर’ इसलिए पड़ा क्योंकि यह स्थान ओंकार के आकार के द्वीप पर स्थित है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च है और इसे भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

इस ज्योतिर्लिंग की पूजा का महत्व बहुत प्राचीन काल से रहा है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने यहां अपने भक्त मंडाता की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए थे। यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है और यहाँ की मूर्ति अत्यंत प्राचीन और पवित्र मानी जाती है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। विशेषतः महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है।

नर्मदा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर का वातावरण बेहद शांत और आध्यात्मिक होता है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। ओंकारेश्वर का पवित्र स्थान एक बार जरूर देखने योग्य है, जहां धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होते हैं।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा न केवल धार्मिक अनुभव प्रदान करती है, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास से भी रूबरू कराती है। यह स्थान उन सभी के लिए आदर्श है जो भगवान शिव की उपासना और भारतीय धार्मिक परंपराओं का अनुभव करना चाहते हैं।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, जिसे बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और यहाँ शिव भक्तों का तांता वर्ष भर लगा रहता है। वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का उल्लेख कई पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, जो इसकी धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे ज्योतिर्लिंग के रूप में वरदान दिया था। ऐसा माना जाता है कि रावण ने इस ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने का प्रयास किया था, लेकिन एक दुर्घटना के कारण इसे देवघर में ही स्थापित करना पड़ा। यह घटना इस मंदिर की पवित्रता और महत्त्व को और भी बढ़ा देती है।

वैद्यनाथ धाम में प्रमुख धार्मिक अनुष्ठानों में श्रावण मास के दौरान होने वाली कांवड़ यात्रा प्रमुख है। इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु गंगा नदी से जल लेकर पैदल यात्रा करते हुए भगवान वैद्यनाथ का अभिषेक करते हैं। इसके अलावा, महाशिवरात्रि और अन्य प्रमुख हिंदू त्योहारों के दौरान भी यहां विशेष पूजा-अर्चना और उत्सवों का आयोजन किया जाता है।

मंदिर का इतिहास भी कम रोचक नहीं है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर प्राचीन काल से ही शिव भक्तों का प्रमुख आस्था केंद्र रहा है। इसके स्थापत्य शैली में भी प्राचीन भारतीय वास्तुकला की झलक मिलती है। मंदिर के परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं, जो इसकी धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ाते हैं।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग देवघर का यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं न केवल स्थानीय लोगों के बल्कि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित, एक प्रमुख धार्मिक स्थल है जो श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह ज्योतिर्लिंग सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के घने जंगलों में स्थित है, जो प्राकृतिक सुंदरता और अद्वितीय आध्यात्मिकता का संगम प्रस्तुत करता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को घने जंगलों और पहाड़ों की यात्रा करनी होती है, जो इस धार्मिक स्थल की पवित्रता और पौराणिकता को और भी बढ़ा देता है।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह स्थान भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध करने के बाद उत्पन्न हुआ था। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने इस स्थान पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में अवतार लिया था। यह कथा इस मंदिर की धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देती है और यहां आने वाले भक्तों को एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।

यहां के धार्मिक अनुष्ठानों में प्रमुख रूप से अभिषेक, पूजन और आरती शामिल हैं। प्रतिदिन सैकड़ों भक्त यहां भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं और विशेष अवसरों पर यह संख्या हजारों में पहुंच जाती है। महाशिवरात्रि और श्रावण मास के दौरान यहां विशेष अनुष्ठान और मेलों का आयोजन किया जाता है, जो भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य भी अद्वितीय है। सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के घने जंगल, झरने और नदी इस स्थल की प्राकृतिक सुंदरता को और भी निखारते हैं। यहां का वातावरण शांति और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण है, जो भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव का अनुभव कराता है।

इस प्रकार, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य और पौराणिक कथाओं का भी संगम है। यह स्थल भक्तों के लिए एक अद्वितीय आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव प्रदान करता है।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है और इसे भगवान शिव का अत्यंत पवित्र स्थान माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिंदू धर्म में इसकी विशेष मान्यता है। वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है। इस मंदिर का उल्लेख पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है, जो इसे एक ऐतिहासिक महत्व का स्थान बनाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और इसे कई बार पुनर्निर्माण किया गया है। मौजूदा संरचना का निर्माण 18वीं शताब्दी में महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। मंदिर की वास्तुकला अत्यंत भव्य है और इसके मुख्य शिखर पर सोने का आवरण चढ़ाया गया है, जो इसकी शोभा को और भी बढ़ाता है। यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व बहुत बड़ा है। यह माना जाता है कि यहां भगवान शिव स्वयं निवास करते हैं और उनके दर्शन से सभी पापों का नाश होता है। इस मंदिर में महाशिवरात्रि का त्योहार विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालु पूरे देश से यहां पहुंचते हैं और भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इसके अलावा सावन के महीने में भी यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है।

वाराणसी का काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यहां आकर भक्तों को मानसिक और आत्मिक शांति की अनुभूति होती है। इस मंदिर की पवित्रता और महत्व को देखते हुए इसे 12 ज्योतिर्लिंगों में एक प्रमुख स्थान प्राप्त है।


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