भारत की संस्कृति और परंपराओं में हर त्योहार का अपना एक विशेष महत्व होता है। जैसे दीपावली प्रकाश का पर्व है, होली रंगों का त्योहार है, वैसे ही विश्वकर्मा पूजा को मेहनतकश लोगों, कारीगरों, इंजीनियरों, तकनीशियनों और मशीनों का त्योहार माना जाता है। इस दिन लोग अपने औज़ारों और मशीनों की पूजा करते हैं, ताकि काम में उन्नति और सफलता मिले। इसे “इंडस्ट्रियल फेस्टिवल” भी कहा जाता है।
भगवान विश्वकर्मा कौन हैं?
- हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा को “देव शिल्पी” कहा गया है।
- इन्हें ब्रह्मांड का पहला वास्तुकार, शिल्पकार और इंजीनियर माना जाता है।
- मान्यता है कि इन्होंने ही स्वर्गलोक, द्वारका नगरी, लंका नगरी, इंद्रप्रस्थ, पुष्पक विमान और भगवान शिव का त्रिशूल बनाया।
- वे केवल वास्तुकला के ही नहीं बल्कि धातुकला, यांत्रिकी और कला के भी देवता हैं।
विश्वकर्मा पूजा की तिथि और समय
- यह पूजा हर साल कन्या संक्रांति के दिन होती है, यानी जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं।
- आमतौर पर यह 17 या 18 सितंबर को आती है।
- कई क्षेत्रों में इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
- मशीनों की पूजा – इस दिन कारखाने, दफ्तर, कार्यशालाएँ और यहाँ तक कि गाड़ियों तक को सजाकर उनकी पूजा की जाती है।
- काम में उन्नति – मान्यता है कि औज़ार और मशीनें सालभर अच्छे से काम करती हैं और सफलता प्रदान करती हैं।
- श्रमिकों का सम्मान – यह दिन उन सभी मेहनतकश हाथों को समर्पित है, जो समाज और देश की उन्नति में योगदान देते हैं।
- उद्योग और तकनीक का पर्व – इसे भारत का “इंडस्ट्रियल फेस्टिवल” कहा जाता है, जहाँ उत्पादन और तकनीक की शक्ति को सम्मान दिया जाता है।
विश्वकर्मा पूजा की विधि
- स्नान और तैयारी – प्रातः स्नान करके पूजा स्थल को सजाया जाता है।
- प्रतिमा स्थापना – भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है।
- औज़ार और मशीनों की सफाई – सभी मशीनों, औज़ारों, गाड़ियों को धोकर सजाया जाता है।
- पूजन सामग्री – नारियल, पान, सुपारी, पुष्प, मिठाई और अगरबत्ती चढ़ाई जाती है।
- मंत्र जाप और आरती –
“ॐ आधार शक्तपे नमः, ॐ कूटस्थाय नमः, ॐ अनन्ताय नमः, ॐ पृथिव्यै नमः।” - प्रसाद वितरण – पूजा के बाद भोग और प्रसाद का वितरण होता है।
पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ
- पुराणों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए दिव्य शस्त्र और महल तैयार किए।
- कहा जाता है कि पांडवों का इंद्रप्रस्थ महल भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था।
- बंगाल और झारखंड की परंपरा के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन मशीनों की पूजा करता है, उसका कामकाज सालभर बिना रुकावट चलता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में विश्वकर्मा पूजा
- पश्चिम बंगाल और झारखंड – यहाँ पतंगबाजी का आयोजन भी किया जाता है।
- बिहार और ओडिशा – कारखानों और कार्यशालाओं में बड़े स्तर पर पूजा होती है।
- उत्तर भारत – दुकानदार, मजदूर और ड्राइवर अपने औज़ारों और वाहनों की पूजा करते हैं।
- दक्षिण भारत – यहाँ इसे विश्वकर्मा जयंती के रूप में अधिक मनाया जाता है।
आधुनिक युग में विश्वकर्मा पूजा
- पहले यह पूजा मुख्य रूप से कारीगर और मजदूर करते थे।
- आजकल इंजीनियर, आर्किटेक्ट, मैकेनिक और फैक्ट्री वर्कर भी इसे उत्साह से मनाते हैं।
- ऑफिसों और कंपनियों में भी इस दिन विशेष पूजा और भंडारा रखा जाता है।
आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश
यह पर्व श्रम, तकनीक और कला को एक साथ जोड़कर मानव समाज के विकास का प्रतीक है।
यह पूजा हमें सिखाती है कि काम और श्रम ही पूजा है।
हर औज़ार और मशीन का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वही हमारी आजीविका का आधार है।
विश्वकर्मा पूजा और पतंगबाजी
- खासकर बिहार, झारखंड और बंगाल में इस दिन लोग पतंग उड़ाने का आयोजन करते हैं।
- आसमान में उड़ती पतंगें इस त्योहार की खूबसूरती को और बढ़ा देती हैं।
विश्वकर्मा पूजा से जुड़े मंत्र
- “ॐ आधार शक्तपे नमः”
- “ॐ विश्वकर्मणे नमः”
- “ॐ कूटस्थाय नमः”
इन मंत्रों का जाप करने से जीवन और काम दोनों में सफलता मिलती है।
निष्कर्ष
विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह मेहनत, श्रम, तकनीक और कला का उत्सव है। इस दिन जब मजदूर अपने औज़ारों की पूजा करते हैं या इंजीनियर मशीनों को सजाते हैं, तो यह हमें यह संदेश देता है कि काम ही पूजा है।
आज के युग में भी विश्वकर्मा पूजा हमें यह सिखाती है कि प्रगति के लिए न केवल तकनीक और मशीनें जरूरी हैं, बल्कि उनका सम्मान और सही उपयोग भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
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