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श्री शिव रुद्राष्टकम का अर्थ और महत्व: लाभ और जाप विधि

Mahakal Sep 2, 2024 0

श्री शिव रुद्राष्टकम, भगवान शिव की स्तुति में रचित एक अत्यंत प्रभावशाली और प्रसिद्ध स्तोत्र है। आईए जानते है रुद्राष्टकम का अर्थ और महत्व: लाभ और जाप विधि , यह रुद्राष्टकम श्रीरामचरितमानस के उत्तरकांड में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया है। रुद्राष्टकम, शिव के एक विशेषण रुद्र का आह्वान करने वाला एक संस्कृत ध्यान मंत्र है. यह भुजंगप्रयात छंद और जगती छंद में रचित है। श्री रामचरितमानस में वर्णित है कि भगवान श्री रामचन्द्र ने रावण से युद्ध करने से पहले रामेश्वरम में रुद्राष्टकम गाकर भगवान शिव की स्तुति की थी। कहा जाता है कि शिव की कृपा से ही राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। 

शास्त्रों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपने शत्रुओं से परेशान है, तो उसे शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए रुद्राष्टकम का अर्थ और महत्व: लाभ समझते हुए रुद्राष्टकम का पाठ करना चाहिए। इसके लिए सात दिनों तक सुबह-शाम कुशा के आसन पर बैठकर रुद्राष्टकम का पाठ करना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन भी रुद्राष्टकम का अर्थ और महत्व: लाभ  का पाठ बहुत लाभकारी माना जाता है।

 रुद्राष्टकम के पाठ से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और समृद्धि आती है। इसमें शिव की महिमा का गुणगान किया गया है, जिससे व्यक्ति को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

श्री शिव रुद्राष्टकम का अर्थ और महत्व  Shri Rudrashtakam ka Arth aur Mahatva Benefits

श्री शिव रुद्राष्टकम का अर्थ समझने से पहले, हमें इसके हर श्लोक का अर्थ और  श्री शिव रुद्राष्टकम महत्व (Benefits of Shri Shiv Rudrashtakam) समझना चाहिए:

  1. नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
    इस श्लोक में भगवान शिव को नमन किया जाता है। वे निर्वाण के स्वरूप हैं, जो सृष्टि का पालन और संहार करते हैं।
    महत्व: इस श्लोक के जाप से व्यक्ति को संसार के मोह-माया से मुक्ति मिलती है।
  2. विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं
    भगवान शिव को सर्वव्यापी और ब्रह्मस्वरूप माना गया है।
    महत्व: यह श्लोक व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देता है।
  3. निजं निर्विकल्पं निरीहं निरीहं
    शिव को निर्गुण और निर्विकार माना गया है, जो किसी भी कामना से रहित हैं।
    महत्व: इस श्लोक का जाप मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
  4. चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं
    भगवान शिव को आकाश में स्थित माना गया है, जो चेतना का स्रोत हैं।
    महत्व: इस श्लोक से व्यक्ति के जीवन में आनंद और शांति का संचार होता है।

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥

अर्थ – निराकार ओंकार चौथे का मूल है, पहाड़ों का भगवान, जो शब्दों की अज्ञानता से परे है।

मैं भयानक, महान समय, समय, दयालु, प्रकृति के गुणों का भंडार, पारलौकिक दुनिया को नमस्कार करता हूं।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

 अर्थ – वह बर्फ के पहाड़ की तरह सफेद और गहरा था, और उसका शरीर मन की लाखों रोशनी जैसा था।

चमकते मुकुट और लहराते बालों वाली सुंदर गंगा, युवा चंद्रमा की चमकती दाढ़ी और गले में सांप।

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

अर्थ – उसके कानों में झुमके, सफेद आंखें, बड़ा, प्रसन्न चेहरा, नीला गला और दयालुता थी।

हे मृगराज, मैं उन प्रिय भगवान शिव की पूजा करता हूं, जो चमड़े से बने हैं और सिर पर माला पहनते हैं।

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।

त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥

अर्थ –  प्रचंड, तेजस्वी, गौरवान्वित, परमप्रभु, अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्य, प्रकाश।

मैं देवी भवानी की पूजा करता हूं, जो तीन त्रिशूलों को मिटा देता है और अपने हाथ में एक त्रिशूल रखता है।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

अर्थ – दिव्य कल्याण, युग का अंत, सदा सच्चा आनंद दाता, पुरारि।

हे चेतना के आनंद, संदेह और भ्रम का नाश करने वाले, कृपया दयालु हों, हे भगवान, कृपया मुझ पर प्रसन्न हों।

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

अर्थ – इस लोक में या परलोक में कोई भी भगवान उमानाथ के चरण कमलों की पूजा नहीं करता।

सुख, शांति या संकट का नाश जैसी कोई चीज नहीं है, हे प्रभु, सभी प्राणियों पर प्रसन्न रहें।

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

अर्थ –  न मैं योग जानता हूँ, न मैं जप जानता हूँ, न मैं पूजा जानता हूँ, न मैं सदैव हे शम्भु भगवान, आपको ही अर्पित करता हूँ।

हे भगवान शंभो, कृपया मुझे बुढ़ापे और जन्म की बाढ़ से बचाएं।

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये

ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।। 

अर्थ –  इस रुद्राष्टकम का पाठ ब्राह्मण ने आनंद के लिए किया था

जो लोग इसका भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं उनसे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

॥  इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

अर्थ –  ॥ यह श्री गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित संपूर्ण श्री रुद्राष्टकम् है।

श्री शिव रुद्राष्टकम पाठ की जाप विधि 

  1. स्नान और शुद्धिकरण:
    सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान चयन:
    शिवलिंग के सामने, पूजा कक्ष में, या किसी पवित्र स्थान पर बैठें।
  3. ध्यान:
    भगवान शिव का ध्यान करते हुए, उनके स्वरूप को मन में रखें।
  4. रुद्राष्टकम पाठ:
    श्री शिव रुद्राष्टकम का उच्चारण शुद्धता और श्रद्धा के साथ करें।
    संपूर्ण पाठ के दौरान, शिवलिंग पर जल या गंगा जल अर्पित करें।
  5. प्रसाद:
    पाठ के बाद भगवान शिव को प्रसाद अर्पित करें और उसे ग्रहण करें।

निष्कर्ष

श्री शिव रुद्राष्टकम का अर्थ और महत्व: लाभ यह है कि इसका पाठ भगवान शिव की महिमा का बखान करता है। इसका नियमित जाप व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि और मानसिक शांति लाता है। शिवभक्तों के लिए यह एक अनमोल है, जिसे हर दिन श्रद्धा पूर्वक गाया जाना चाहिए।

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