भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में जब भी सृष्टि, पालन और संहार की चर्चा होती है, तो भगवान विष्णु का नाम सबसे पहले लिया जाता है। विष्णुजी की एक प्रसिद्ध छवि हम सभी ने देखी होगी—वे क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर योगनिद्रा में विश्राम करते हैं, उनकी नाभि से कमल प्रकट होता है और उस पर ब्रह्मा जी विराजमान होते हैं। उनके चरणों को लक्ष्मीजी दबा रही होती हैं और चारों ओर देवगण उनकी स्तुति करते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान विष्णु क्षीरसागर में ही क्यों शयन करते हैं? और वे शेषनाग पर ही क्यों सोते हैं? इस प्रश्न का उत्तर केवल पौराणिक कथाओं में ही नहीं, बल्कि ब्रह्मांड और जीवन के गहरे रहस्यों में छुपा है। इस ब्लॉग में हम इन्हीं रहस्यों को विस्तार से समझेंगे।
क्षीरसागर क्या है?
क्षीरसागर को दूध का महासागर भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, यह ब्रह्मांड के मध्य में स्थित एक दिव्य सागर है।
- क्षीर का अर्थ है दूध, जो शुद्धता और जीवन का प्रतीक है।
- यह सागर अमरत्व (अमृत), ऊर्जा और शांति का प्रतीक है।
- माना जाता है कि समुद्र मंथन भी इसी क्षीरसागर में हुआ था, जहाँ देवताओं और असुरों को अमृत प्राप्त हुआ।
क्षीरसागर वास्तव में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का महासागर है, जहाँ सब कुछ उत्पन्न होता है और विलीन भी हो जाता है।
शेषनाग का रहस्य
शेषनाग, जिन्हें अनंतनाग भी कहा जाता है, केवल एक दिव्य सर्प नहीं बल्कि अनंत समय और ऊर्जा के प्रतीक हैं।
- “शेष” का अर्थ है—जो अंत में भी बचा रह जाए।
- शेषनाग अनंत काल और ब्रह्मांडीय आधार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- उनके फन पर पूरा ब्रह्मांड टिका हुआ है।
जब भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन करते हैं, तो यह दर्शाता है कि सृष्टि का आधार समय और अनंत चेतना है।
विष्णु का योगनिद्रा शयन
विष्णुजी का शयन साधारण नींद नहीं है, इसे योगनिद्रा कहा जाता है।
- योगनिद्रा का अर्थ है पूर्ण शांति और संतुलन की अवस्था, जहाँ मन जागृत भी है और विश्राम में भी।
- इस अवस्था में विष्णुजी ब्रह्मांड की योजना बनाते हैं।
- जब समय आता है, तो उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है और उस पर ब्रह्मा जी प्रकट होकर सृष्टि की रचना करते हैं।
इसका अर्थ है कि सृष्टि की उत्पत्ति विष्णुजी की योगनिद्रा से होती है।
पौराणिक कथा
श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णु पुराण में वर्णन आता है कि जब सृष्टि का प्रलय होता है, तब सब कुछ जलमग्न हो जाता है। उस समय केवल भगवान विष्णु ही शेषनाग पर शयन करते रहते हैं।
- वे क्षीरसागर में योगनिद्रा में रहते हैं।
- उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है।
- कमल पर ब्रह्मा जी जन्म लेते हैं।
- ब्रह्मा जी, विष्णुजी के आदेश पर, पुनः सृष्टि की रचना करते हैं।
इस कथा से स्पष्ट होता है कि हर सृष्टि का प्रारंभ विष्णुजी की योगनिद्रा से होता है और हर अंत के बाद भी वे अनंत में विद्यमान रहते हैं।
लक्ष्मीजी का महत्व
विष्णुजी के शयन के दौरान, माता लक्ष्मी हमेशा उनके चरणों में रहती हैं।
- यह इस बात का प्रतीक है कि धन, वैभव और समृद्धि हमेशा पालनकर्ता के साथ रहती है।
- यह हमें यह संदेश देता है कि संपत्ति और सुख वहीं स्थायी हैं जहाँ धर्म और संतुलन है।
प्रतीकात्मक अर्थ
भगवान विष्णु का यह दृश्य केवल कथा नहीं, बल्कि गहरे प्रतीकात्मक अर्थ रखता है:
- क्षीरसागर – अनंत ऊर्जा, जीवन और शांति।
- शेषनाग – समय और अनंत चेतना।
- विष्णु का शयन – सृष्टि का संतुलन और शांति।
- कमल से ब्रह्मा का प्रकट होना – सृजन की प्रक्रिया।
- लक्ष्मीजी का साथ – समृद्धि और धर्म का अटूट संबंध।
आध्यात्मिक संदेश
भगवान विष्णु के शेषनाग पर क्षीरसागर में शयन का गहरा संदेश है:
- जीवन में जब हम ध्यान और भक्ति करते हैं, तो हम भी क्षीरसागर जैसी शांति का अनुभव कर सकते हैं।
- शेषनाग हमें याद दिलाते हैं कि समय अनंत है और हमें धैर्यपूर्वक संतुलित रहना चाहिए।
- विष्णु का योगनिद्रा हमें यह सिखाती है कि सच्ची शक्ति कर्म और शांति के संतुलन में है।
आज के समय में इसका महत्व
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में भगवान विष्णु का यह स्वरूप हमें कुछ खास बातें सिखाता है:
- शांति में ही शक्ति है।
- हर शुरुआत और अंत केवल एक अवस्था है, सत्य तो वही है जो शाश्वत है।
- धैर्य, संतुलन और विश्वास जीवन को सुखमय बनाते हैं।
निष्कर्ष
भगवान विष्णु का शेषनाग पर क्षीरसागर में शयन केवल एक धार्मिक चित्रण नहीं, बल्कि ब्रह्मांड का रहस्य है।
यह हमें सिखाता है कि सृष्टि का आधार शांति, समय और संतुलन है।
विष्णुजी योगनिद्रा में रहकर हमें यह संदेश देते हैं कि जब मनुष्य अपनी आंतरिक शांति को पहचान लेता है, तभी वह सच्चे अर्थों में जीवन का आनंद और ब्रह्मांडीय सत्य को समझ सकता है।
इसलिए कहा जाता है कि शेषनाग पर सोते हुए विष्णुजी का स्वरूप वास्तव में “अनंत शांति और अनंत जीवन” का प्रतीक है।
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