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श्री हनुमान साठिका : संकटमोचन का दिव्य स्तोत्र

Mayank Sri Sep 21, 2025 0
श्री हनुमान साठिका : संकटमोचन का दिव्य स्तोत्र

🙏 श्री हनुमान साठिका 🙏

॥ श्री हनुमते नमः ॥

1. अतुलितबलधामं स्वर्णकायं सुवेशम्।
दनुजवननिहन्तारं ज्ञानिनामग्रगण्यम्॥

2. वज्रदेहं महावीर्यं रामभक्तिपरायणम्।
लोकानां हितकारणं वायुपुत्रं नमाम्यहम्॥

3. रामदूतं महाशक्तिं सर्वशक्तिसमन्वितम्।
सुग्रीवसचिवं धीरं सत्त्वसंपन्नमुत्तमम्॥

4. लंकाविध्वंसकर्तारं रावणान्तकरं प्रभुम्।
सीताशोकविनाशार्थं रामाय दूतमागतं॥

5. समुद्रलङ्घनं कृत्वा लंकां दग्ध्वा महाबलः।
सीताया दर्शनं कृत्वा रामायाश्वासदायकः॥

6. पातालमग्नं रूपं च रावणस्य महाबलम्।
रणांगणे निपात्याशु रामराज्यं व्यवस्थितम्॥

7. रामेष्टं प्रियकरं च भक्तजनपरायणम्।
भयत्राणं दुःखनाशं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

8. दुर्गं कार्यं हनुमता सहजं सिद्धिकारकम्।
रामनामस्मरणेन सर्वसिद्धिः प्रदीयते॥

9. भीमरूपं महावेगं सर्वदोषविनाशकम्।
भक्तवत्सलमत्यन्तं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

10. दीनानाथं कृपाकरणं भक्तार्तिहरं प्रभुम्।
रामपादप्रसक्तं च हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

11. शत्रुसैन्यप्रमथनं भूतप्रेतविनाशकम्।
वज्रपाणिं महातेजं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

12. ब्रह्माण्डनायकं वीरं सर्वसिद्धिप्रदायकम्।
ज्ञानविज्ञानसंपन्नं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

13. शरणागतवत्सलं च दीनबन्धुं दयालुम्।
सीतान्वेषणतत्परं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

14. योगिनां मनसाध्यं च योगशास्त्रविशारदम्।
रामभक्तिपरं नित्यं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

15. रुद्रांशं कपिरूपं च पवनस्य आत्मजं महत्।
रामाय दूतं शूरं च हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

16. विद्यावानं गुणी भक्तं कृतज्ञं रामसेवकम्।
भक्तकल्पतरुं वन्दे हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

17. सुरासुरविनाशं च राक्षसार्तिविनाशकम्।
रामराज्यस्थापनं च हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

18. लोकपावनकर्तारं सर्वपापप्रणाशकम्।
रामनामरसास्वादं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

19. भवसागरपारं च भक्तानां तारकं प्रभुम्।
रामकार्यधुरंधरं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

20. सीतारामपदद्वन्द्वसेवकं दासविग्रहम्।
अभयदं करुणामूर्तिं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

21. लङ्कापुरीप्रदीप्तं च जनकात्मजादर्शनम्।
रामायाश्वासदातारं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

22. रावणादिनिहन्तारं शत्रुसैन्यविनाशकम्।
रामनामबलोपेतं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

23. सुग्रीवसिंहासनस्थं रामराज्यस्थापकम्।
भक्तानां हितकारणं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

24. सर्वत्र गमनं कृत्वा रामकार्यमनुत्तमम्।
सिद्धिं दातारमत्यन्तं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

25. भक्ताभीष्टप्रदातारं भक्तरक्षाकरं प्रभुम्।
रामानन्दं सदानन्दं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

26. सुरमुनिप्रणम्यं च सिद्धचारणवन्दितम्।
रामदासं महातेजं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

27. योगीन्द्रपूज्यपादाब्जं भक्तार्तिहरं प्रभुम्।
रामनामरसासक्तं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

28. विद्यामहादानकर्तारं सर्वतन्त्रविशारदम्।
रामस्मरणसंयुक्तं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

29. बालार्कसदृशं तेजो महाविद्याधरप्रियः।
रामरूपानुरागी च हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

30. ब्रह्माण्डैकविनाशं च सर्वदुष्टविनाशकम्।
रामनामधृतात्मानं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

31. भक्तकल्पद्रुमं नित्यं भक्तार्तिहरकारकम्।
रामकार्यरतं धीरं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

32. सर्वशास्त्रविशारदं च सर्वविद्यासमन्वितम्।
रामदूतं महामन्त्रं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

33. सुरभूतपिशाचादि पीडां नाशयितुं प्रभुम्।
रामनामबलोपेतं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

34. ज्वरोत्पातविनाशं च सर्वव्याधिनिवारणम्।
रामस्मरणसंपन्नं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

35. सर्वरोगहरं नित्यं सर्वदुःखनिवारणम्।
रामानन्दं महाशक्तिं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

36. सर्वसिद्धिप्रदातारं सर्वशक्तिसमन्वितम्।
रामकार्यं करोत्येव हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

37. शरणागतवत्सलं च भक्तानां रक्षकारकम्।
रामभक्तिपरं नित्यं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

38. ब्रह्मविष्णुमहेशादि देवानां पूजितं प्रभुम्।
रामकार्यरतं शूरं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

39. वायुपुत्रं महावेगं सर्वलोकनमस्कृतम्।
रामदासं महोत्साहं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

40. सर्वपीडाविनाशं च सर्वदुःखनिवारणम्।
रामनामरसालीनं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

41. भक्तप्रियं महाभक्तं रामकार्यार्थसाधकम्।
भक्तजनानां दातारं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

42. सर्वलोकहितं नित्यं सर्वशत्रुविनाशकम्।
रामराज्यस्थितं धीरं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

43. ब्रह्माण्डनायकं वीरं वज्रदेहं महाबलम्।
रामदासं सदाभक्तं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

44. सर्वपापप्रशमनं सर्वदोषविनाशकम्।
रामनामबलोपेतं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

45. भक्ताभीष्टप्रदं नित्यं भक्तानां सुखदायकम्।
रामस्मरणरतं शूरं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

46. योगिध्यानपरं नित्यं योगसिद्धिप्रदायकम्।
रामभक्त्यनुरक्तं च हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

47. सर्वलोकप्रसिद्धं च भक्तानां सुखदायकम्।
रामदासं महाशक्तिं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

48. ज्ञानविज्ञानसंपन्नं सर्वगुप्तविदां प्रभुम्।
रामकार्यं करोत्येव हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

49. सुरमुनिसंस्तुतं नित्यं सिद्धचारणवन्दितम्।
रामनामरसासक्तं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

50. भक्तानां संकटत्राणं भक्तानां दुःखनाशकम्।
रामपादप्रसक्तं च हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

51. योगिनां ध्येयमध्यात्मं योगिनां ध्यानगोचरम्।
रामनामरसालीनं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

52. भीष्मरूपधरं शत्रौ भीषणं रौद्रविग्रहम्।
रामकार्यरतं शूरं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

53. ब्रह्माण्डैकविनाशं च सर्वलोकविनाशकम्।
रामनामबलोपेतं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

54. भक्तरक्षणकर्तारं भक्तानां सुखदायकम्।
रामस्मरणरतं नित्यं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

55. सर्वसिद्धिप्रदं नित्यं सर्वशक्तिसमन्वितम्।
रामकार्यं करोत्येव हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

56. भक्तानां संकटत्राणं भक्तानां दुःखनाशकम्।
रामपादप्रसक्तं च हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

57. सर्वलोकहितं नित्यं सर्वशत्रुविनाशकम्।
रामराज्यस्थितं धीरं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

58. ब्रह्मविष्णुमहेशादि देवानां पूजितं प्रभुम्।
रामकार्यरतं शूरं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

59. वायुपुत्रं महावेगं सर्वलोकनमस्कृतम्।
रामदासं महोत्साहं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

60. सर्वपीडाविनाशं च सर्वदुःखनिवारणम्।
रामनामरसालीनं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥

🌺 समापन श्लोक 🌺

जो हनुमान साठिका का नित्य पाठ करता है,
वह सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त होकर सुख, बल, बुद्धि और विजय प्राप्त करता है।

🙏 संकटमोचन हनुमान अष्टक 🙏

श्री हनुमानजी की यह अष्टक गोस्वामी तुलसीदासजी ने रची है। इसका पाठ संकट निवारण एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी है।

संकटमोचन हनुमान अष्टक

श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ॥

॥ दोहा ॥

1. बाल समय रघुनाथ समेत, गिरी गह बराजी ।
अति लघु रूप धरि लंक जरावि, सियहि दिखायि ।।

2. बिमल मति, जग दीपन राम, सुजस सुनायो ।
संकटमोचन नाम तिहारो, तुलसी कहि पायो ।।

3. लंक बिनाश कीन्ह, रामकारज कारण ।
सिया सुधि आनि दीन्हि, रामहि दीन्हि जियारण ।।

4. रावण संहार करि, रामराज्य विराजे ।
संकट हरन मंगल मूरति, तुलसीस कहत समाजे ।।

॥ दोहा ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥

Mayank Sri

Website: http://mahakaltemple.com

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