विष्णु पुराण का प्रथम भाग (पुस्तक 1) ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति तथा उसकी रचना पर गहन तथा विस्तृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो सम्पूर्ण पुराण का दार्शनिक तथा आध्यात्मिक आधार है। यह भाग इस घोषणा से आरम्भ होता है कि भगवान विष्णु ही परब्रह्म हैं – वे ही सृष्टि के मूल, कारण तथा अंत हैं। ब्रह्मा तथा शक्ति जैसे देवता भी उनकी इच्छा तथा अभिलाषा से ही प्रकट होते हैं। इस अंत में मध्य भाग है कितक्षप्रकमार अव्यक्त ब्रह्मा से महत्तत् त त्व उत्पन्न होता है, ष्टिर अहंकारमार, तं तं ममत्रम् तथा अन्त में पंचमहाभूत – पृथ्वी, जल, अष्टि, मियु तथा अकर्म – प्रकट होते हैं। इनसे सम्पूर्ण जगत् की रचना हुई है। शिशुरूपी
ब्रह्मा नमस्तभ से प्रकट हुए कमल से उत्पन्न होते हैं तथा उनमें सृष्टिकत्मन काम कामायं समपं जमतम होता है। इसके बाद अलग-अलग योष्ठियाँ बनती हैं – स्थिर (तमस्थर), चलायमान (चर), देश, असुर, शतपत्री, मनुष्य, पशु, पक्षी, स्पष्ट। अष्टाद। यह पुस्तक सङ्गा (मूल सृष्टि) और विष्णु (दूसरी सृष्टि) के सिद्धांत पर बहुत विस्तार से चर्चा करती है। साथ ही, समय के चक्रीय क्रम, जैसे मन्वंतर, का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है और पहले मनु – स्वयंभू मनु – और उनके वंशजों की कहानी दी गई है। इस भाग में कई ऋषियों, प्रजापतियों और अन्य देवताओं की उत्पत्ति का भी वर्णन किया गया है। दार्शनिक दृष्टिकोण से, यह कार्य आत्मा, परमा, माया और ब्रह्म के बीच के संबंधों से संबंधित है, और यह समझाने की कोशिश करता है कि सांसारिक दुनिया अस्थायी है और केवल विष्णु ही शाश्वत सत्य हैं। यह केवल सृष्टि की कहानी नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है जो आत्मा को भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के माध्यम से मोक्ष की ओर ले जाती है।अनेक ऋविय ं , प्रजापवतय ं , और अन्य देितमओां की उत्पष्टत्त
कम भी िणणन है। दमर्णष्टनक दृष्टिकोण से यह भमग आिम, परममिम, ममयम और ब्रह् के सांबांधोां की ष्टििेचनम
करतम है, तथम यह समझमने कम प्रयमस करतम है ष्टक भ ष्टतक सांसमर क्षष्टणक है और के िल विष्णु ही शाश्वत
सत्य हैं। यह खांड के िल सृष्टि की कहमनी नहीां, बत्मि एक आध्यमत्मिक ष्टर्क्षण है जो आिम को भत्मि, ज्ञमन
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