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Varuthini Ekadashi Vrat Katha:वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा

Mahakal Apr 24, 2025 0

वरुथिनी एकादशी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से व्रत रखने और उपवासी रहने का महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और उपासना की जाती है।

युधिष्ठिरने पूछा- वासुदेव ! आपको नमस्कार है। वैशाख मासके कृष्ण पक्ष में किस नामकी एकादशी होती है? उसकी महिमा बताइये।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन् ! वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘वरूथिनी’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है। ‘वरूथिनी’ के व्रत से ही सदा सौख्यका लाभ और पापकी हानि होती है। यह समस्त लोकों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। ‘वरूथिनी’ के ही व्रतसे मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अन्य अनेक राजा स्वर्ग लोक को प्राप्त हुए हैं। जो दस हजार वर्षोंतक तपस्या करता है, उसके समान ही फल ‘वरूथिनी’ के व्रत से भी मनुष्य प्राप्त कर लेता है। नृपश्रेष्ठ । घोड़ेके दानसे हाथी का दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी बड़ा है। भूमिदानसे भी अधिक महत्त्व तिलदानका है। तिल दान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्ण दान से बढ़कर अनदान है, क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्नसे ही तृप्ति होती है। विद्वान् पुरुषों ने कन्यादान को भी अन्नदानके ही समान बताया है।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे राजेश्वर! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है। इसकी महात्म्य कथा आपसे कहता हूँ..

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन

रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।

राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए। उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे।

जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।

वरुथिनी एकादशी का महत्व:

  1. इस दिन व्रत रखने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति मिलती है।
  2. यह व्रत विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
  3. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से आत्मिक शांति और पुण्य की प्राप्ति होती है।
  4. यह व्रत मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

व्रत विधि:

  • इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें।
  • दिनभर उपवासी रहें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
  • विशेष रूप से व्रत कथा सुनें और भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • रात्रि को एकादशी तिथि का पालन करते हुए जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
  • अगले दिन द्वादशी तिथि को पारण करें और भोजन ग्रहण करें।

वरुथिनी एकादशी का व्रत श्रद्धा और विश्वास से किया जाए तो यह जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग खोलता है।


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