ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के संबंध में जानना चाहते हैं कि इसके 12 महत्वपूर्ण रहस्य (12 important secrets related to Omkareshwar Jyotirlinga) क्या हैं? इस अद्वितीय स्थान का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यधिक है। ओंकारेश्वर का ओम आकार में स्थित होना, नर्मदा और कावेरी नदियों का संगम, पंचमुखी शिवलिंग की उपस्थिति, और आदि शंकराचार्य से जुड़ा इतिहास जैसे पहलू इस स्थल को विशेष बनाते हैं। क्या आप जानते हैं कि ओंकारेश्वर की परिक्रमा का धार्मिक महत्व क्या है, और शिवपुराण में इस स्थल का क्या वर्णन है? इस प्रकार, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े ये रहस्य न केवल धार्मिक अनुभव को बढ़ाते हैं, बल्कि भक्तों को एक गहन आध्यात्मिक यात्रा पर भी ले जाते हैं।
ॐ आकार का पर्वत: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के मध्य प्रदेश राज्य के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और ओंकार पर्वत पर स्थित है, जो ओम (ॐ) के आकार में है। इस अद्वितीय आकार के कारण इसे “ओंकारेश्वर” कहा जाता है।
नर्मदा और कावेरी संगम: ओंकारेश्वर में नर्मदा और कावेरी दो नदियों का संगम होता है। इस पवित्र स्थल पर नर्मदा नदी मुख्य नदी है, जबकि कावेरी एक छोटी नदी के रूप में बहती है।
दो ज्योतिर्लिंग: ओंकारेश्वर में दो ज्योतिर्लिंग हैं—ओंकारेश्वर और अमरेश्वर, जिन्हें देखने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पंचमुखी शिवलिंग: यहां का शिवलिंग पंचमुखी है, जो भगवान शिव के पांच स्वरूपों को दर्शाता है—सद्योजात, वामदेव, अघोरा, तत्पुरुष, और ईशान।
शिव-पार्वती चौपड़ : इस मंदिर में रोज रात के वक भावान शिव और माता पार्वती विश्राम के लिए आते हैं वो दोनो यहाँ पर चौपड़ खेलते हैं और दूसरी सुबह चौपड़ के पासे बिख्रे पाई जाते हैं
महाशिवरात्रि उत्सव: ओंकारेश्वर में महाशिवरात्रि का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जब लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।
ओंकारेश्वर की परिक्रमा: ओंकार पर्वत के चारों ओर लगभग 7 किलोमीटर लंबी 8. परिक्रमा की जाती है, जिसे करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
शिवपुराण में उल्लेख: शिवपुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व बताया गया है और यहां की पूजा से मोक्ष प्राप्ति की बात कही गई है।
शिवलिंग की विशेष आकृति : ओंकारेश्वर में स्थित शिवलिंग की आकृति विशेष रूप से अर्ध-चंद्राकार है। यह आकृति भगवान शिव के अर्ध-चंद्र रूप का प्रतीक है और इसका दर्शन भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।
त्रिनेत्र शिवलिंग :यहां स्थित शिवलिंग को त्रिनेत्र शिवलिंग भी कहा जाता है। यह मान्यता है कि भगवान शिव ने इस स्वरूप में अपने तीसरे नेत्र के साथ भक्तों को दर्शन दिए।
रावण की तपस्या: एक मान्यता के अनुसार, रावण ने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कठोर तपस्या की थी, लेकिन भगवान शिव ने उसकी इच्छाएं अस्वीकार कर दी थीं।
आदि शंकराचार्य का इतिहास: ओंकारेश्वर वह स्थान है, जहाँ आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से दीक्षा प्राप्त की थी और यहां से उन्होंने अपने दार्शनिक जीवन की शुरुआत की।