सनातन धर्म की परंपरा में भगवान विष्णु के अनेक अवतार वर्णित हैं, लेकिन उनमें से नरसिंह अवतार सबसे विलक्षण और अद्भुत माना गया है। उनकी महिमा ही कुछ ऐसी है कि कहते हैं — भक्त की पुकार सुनते ही वे तुरंत प्रकट हो जाते हैं। संकट चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, बस एक सच्चे मन की पुकार ही नरसिंह भगवान को उपस्थित कर देती है।
उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युः नमाम्यहम्॥यह श्लोक न केवल उनके स्वरूप का वर्णन करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वे कितने तेजस्वी और शक्तिशाली हैं। उनके स्वरूप में एक ओर भय और उग्रता है, तो दूसरी ओर करुणा और भक्तवत्सलता।
नरसिंह भगवान की विशेषता यही है कि वे किसी नियम या मर्यादा से बंधे नहीं रहते। भक्त संकट में हो और श्रद्धा से उन्हें पुकारे, तो वे क्षणभर में प्रकट होकर उसकी रक्षा करते हैं। यही कारण है कि आज भी नरसिंह भगवान को त्वरित उत्तरदाता और संकटमोचन कहा जाता है।
नरसिंह अवतार का प्रकट होना
नरसिंह भगवान का अवतार श्रीमद्भागवत और पुराणों में विस्तार से वर्णित है। हिरण्यकशिपु ने जब अपने ही पुत्र प्रह्लाद पर अत्याचार करना शुरू किया, तब भगवान ने व्रत लिया कि वे भक्त की रक्षा हेतु अवश्य अवतरित होंगे।
हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से कहा था –
“यदि तेरा विष्णु सर्वव्यापी है, तो बता वह इस खंभे में है क्या ?”
और जैसे ही उसने खंभे को तोड़ा, वहीं से भगवान नरसिंह प्रकट हुए।
यह प्रसंग दर्शाता है कि भगवान किसी समय, स्थान या रूप से बंधे नहीं हैं। वे अपने भक्त के लिए किसी भी मर्यादा को तोड़ सकते हैं।
भक्त की पुकार पर त्वरित उत्तरदाता
नरसिंह भगवान के स्वरूप की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वे भक्त की पुकार पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं।
- अन्य देवताओं या अवतारों में साधक को लम्बे समय तक साधना करनी पड़ सकती है।
- परंतु नरसिंह भगवान के बारे में कहा जाता है कि जैसे ही उन्हें याद किया जाए, वे उसी क्षण सहायता के लिए आ जाते हैं।
- उनकी उपस्थिति बिजली की तरह तेज़ और अग्नि की तरह प्रखर मानी जाती है।
इसी कारण से भक्त कहते हैं –
“भय से ग्रसित मन को यदि तुरंत सहारा चाहिए, तो नरसिंह का स्मरण करें।”
अग्नि स्वरूप
नरसिंह भगवान का स्वरूप अग्नि के समान बताया गया है।
- उनकी आँखें ज्वालामुखी जैसी दीप्तिमान हैं।
- उनकी गर्जना से तीनों लोक कंपित हो उठते हैं।
- उनका मंत्र और ध्यान साधक के भीतर एक अग्नि ऊर्जा जाग्रत करता है।
यह अग्नि केवल बाहरी शत्रु को नष्ट करने वाली नहीं, बल्कि भीतर की नकारात्मकता, भय और शंका को भी भस्म करने वाली है।
भीतर की कोमलता
उनका बाहरी रूप भले ही भयानक लगे, परंतु नरसिंह भगवान का हृदय अत्यंत कोमल और भक्तवत्सल है।
- वे अपने भक्तों की हर छोटी-बड़ी बात सुनते हैं।
- यहाँ तक कि यदि कोई भक्त उन्हें शिकायत भी करे, तो वे उसे भी प्रेमपूर्वक स्वीकारते हैं।
- उनका संबंध भक्त से केवल दैवीय नहीं, बल्कि आत्मीय और पारिवारिक है।
यही कारण है कि नरसिंह भगवान को “भीतर से मधुर, बाहर से प्रखर” कहा गया है।
भक्त और भगवान का रिश्ता
नरसिंह भगवान और भक्त का संबंध पिता और संतान जैसा है।
वे केवल एक बालक थे, जिनकी एक पुकार पर भगवान स्वयं खंभे से प्रकट हो गए।
जैसे पिता अपने बच्चे की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, वैसे ही नरसिंह भगवान भी भक्त की रक्षा के लिए किसी नियम या मर्यादा से नहीं बंधते।
प्रह्लाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
भक्त और भगवान का रिश्ता
नरसिंह भगवान और भक्त का संबंध पिता और संतान जैसा है।
- जैसे पिता अपने बच्चे की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, वैसे ही नरसिंह भगवान भी भक्त की रक्षा के लिए किसी नियम या मर्यादा से नहीं बंधते।
- प्रह्लाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
- वे केवल एक बालक थे, जिनकी एक पुकार पर भगवान स्वयं खंभे से प्रकट हो गए।
भक्ति की शक्ति
नरसिंह भगवान का अवतार हमें यह सिखाता है कि सच्ची और निष्कलंक भक्ति कैसी होती है।
- प्रह्लाद ने विपरीत परिस्थितियों में भी भगवान विष्णु का नाम नहीं छोड़ा।
- न अग्नि ने उन्हें जलाया, न सर्प ने डँसा, न ही हाथियों ने रौंदा।
- क्योंकि उनकी रक्षा के लिए भगवान हमेशा पास थे।
यही सन्देश है –
यदि भक्ति सच्ची हो, तो भगवान स्वयं प्रकट होकर रक्षा करते हैं।

नरसिंह आराधना के लाभ
- भय से मुक्ति – भय, दु:स्वप्न या मानसिक अशांति दूर होती है।
- संकट का समाधान – जीवन की कठिन परिस्थितियों में सुरक्षा का आश्वासन मिलता है।
- नकारात्मकता का अंत – ईर्ष्या, द्वेष और शत्रुओं का प्रभाव नष्ट होता है।
- आध्यात्मिक शक्ति – ध्यान और मंत्रजप से साधक के भीतर दिव्य ऊर्जा जाग्रत होती है।
- भक्तवत्सलता का अनुभव – साधक को अनुभव होता है कि कोई शक्ति हमेशा उसकी रक्षा में तत्पर है।
नरसिंह भगवान की आराधना कैसे करें?
- स्मरण – दिन में किसी भी समय बस उनके नाम का स्मरण करें – “ॐ नृसिंहाय नमः”।
- मंत्र जाप –“उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युं नमाम्यहम्॥”
इस मंत्र का 11, 21 या 108 बार जाप करने से अद्भुत शक्ति और शांति मिलती है। - तुलसी पत्र अर्पण – विष्णु के सभी अवतारों की तरह नरसिंह भगवान को तुलसी अत्यंत प्रिय है।
- आरती और भजन – उनकी आरती करके दिन का समापन करना शुभ होता है।
- विशेष दिन – नृसिंह चतुर्दशी और मंगलवार-शनिवार को उनकी पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।
नरसिंह भगवान और आधुनिक जीवन
आज के समय में भी नरसिंह भगवान की प्रासंगिकता उतनी ही है जितनी प्रह्लाद के युग में थी।
- हम सबके जीवन में भय, चिंता और असुरक्षा के क्षण आते हैं।
- ऐसे समय में यदि हम सच्चे मन से उनका स्मरण करें, तो भीतर आत्मबल जाग्रत होता है और संकट से बाहर निकलने की शक्ति मिलती है।
निष्कर्ष
नरसिंह भगवान की महिमा इस बात में छिपी है कि वे केवल देवताओं के रक्षक ही नहीं, बल्कि हर उस भक्त के सहायक हैं जो उन्हें सच्चे मन से पुकारता है। उनकी उपस्थिति यह संदेश देती है कि भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती और संकट कितना भी बड़ा क्यों न हो, भगवान की शरण में जाने से उसका अंत अवश्य होता है।
हिरण्यकश्यप जैसे असुर का अंत करना हो या प्रह्लाद जैसे मासूम भक्त की रक्षा करनी हो, नरसिंह भगवान हमेशा ही समय पर प्रकट होकर धर्म और सत्य की रक्षा करते हैं। यही कारण है कि उन्हें भक्तवत्सल कहा जाता है।
आज भी जो भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ उनका ध्यान करते हैं, वे पाते हैं कि उनके जीवन की बाधाएँ धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं। नरसिंह भगवान केवल बाहरी शत्रुओं से रक्षा नहीं करते, बल्कि भीतर के भय, नकारात्मक विचारों और असुर प्रवृत्तियों को भी नष्ट कर देते हैं।
इसलिए कहा गया है कि —
“मात्र एक पुकार पर प्रकट होते हैं नरसिंह भगवान।”
यदि मन निर्मल हो और हृदय में विश्वास हो, तो उनकी करुणा की वर्षा अवश्य होती है। उनकी भक्ति से हमें यह सीख भी मिलती है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर डटे रहना ही सबसे बड़ा साहस है, और जब हम उस मार्ग पर चलते हैं, तो भगवान स्वयं हमारे रक्षक बन जाते हैं।
धर्म, आस्था और अध्यात्म से जुड़े और रोचक विषयों के लिए –
Leave a Reply