आमलकी या अमली एकादशी की कथा बहुत ही प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण धार्मिक कथा है, जो विशेष रूप से आमलकी एकादशी के दिन सुनाई जाती है। यह कथा भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा और आंवला वृक्ष के महत्व को दर्शाती है।
आमलकी एकादशी कथा
एक समय की बात है, काशी में एक ब्राह्मण और उनकी पत्नी रहते थे। वे बहुत ही धार्मिक और तपस्वी थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। ब्राह्मण और उनकी पत्नी हर साल भगवान विष्णु की पूजा करते थे, लेकिन इस सब के बावजूद उनके जीवन में कोई सुख और समृद्धि नहीं आ रही थी।
ब्राह्मणी दुखी होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करती है कि “हे भगवान! मुझे एक संतान का आशीर्वाद दे, ताकि मेरी घर में खुशहाली और आशीर्वाद का वास हो।”
भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें आमलकी एकादशी का व्रत करने का उपदेश दिया। भगवान विष्णु ने कहा कि आमलकी एकादशी के दिन यदि कोई व्यक्ति विशेष रूप से आमलकी (आंवला) वृक्ष की पूजा करता है और इस दिन उपवास करता है, तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इस दिन का व्रत विशेष रूप से पुण्य प्रदान करने वाला और सभी पापों को नष्ट करने वाला है।
ब्राह्मण और उनकी पत्नी ने भगवान विष्णु के वचनानुसार आमलकी एकादशी का व्रत रखा और आंवला वृक्ष की पूजा की। इसके बाद भगवान विष्णु की कृपा से ब्राह्मणी गर्भवती हुई और उन्हें एक सुंदर संतान की प्राप्ति हुई।
इसके बाद, ब्राह्मण और उनकी पत्नी का जीवन सुखमय हो गया और उनकी समृद्धि में वृद्धि हुई। यही नहीं, उनका परिवार भी बहुत पवित्र और आदर्श बन गया।
यह कथा यह संदेश देती है कि आमलकी एकादशी का व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु के साथ आंवला वृक्ष की पूजा करके पुण्य प्राप्ति, पापों का नाश, और इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। जो लोग सच्चे दिल से इस दिन व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं, उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके जीवन में खुशहाली आती है।
आमलकी एकादशी पर व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा से सभी दुख और संकट समाप्त हो जाते हैं।