भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे की कथा भी बहुत रोचक है। क्या आप जानते हैं कि भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई? यह स्थान भगवान शिव और राक्षस भीम के बीच हुए भीषण युद्ध का प्रतीक है, जिसमें भगवान शिव ने राक्षस भीम का वध कर उसके साथियों को मुक्त कराया था। इस लेख में हम भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा (Bhimashankar Jyotirlinga Ki Katha) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा (Bhimashankar Jyotirlinga Ki Katha) का वर्णन शिवपुराण में मिलता है। शिवपुराण में बताया गया है कि पुराने समय में भीम नाम का एक राक्षस था। वह राक्षस रावण का भाई कुम्भकर्ण का पुत्र था। लेकिन उसका जन्म ठीक उसके पिता की मृत्यु के बाद हुआ था।
भीम को यह जानकारी नहीं थी कि उसके पिता को भगवान विष्णु (राम) ने मारा था।जब उसे अपनी माता से अपने पिता की मृत्यु का कारण पता चला, तो उसने भगवान विष्णु (राम) से प्रतिशोध लेने की ठानी। इसके लिए उसने कठोर तपस्या शुरू की, तब ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया जिससे उसे असीम शक्ति प्राप्त हुई। इस शक्ति के बल पर उसने स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक में आतंक मचाना शुरू कर दिया।
यह राक्षस बहुत शक्तिशाली था और अपनी शक्ति से देवताओं को परेशान करने लगा था। उसे अहंकार हो गया था कि वह सभी को हरा सकता है। उसने भगवान विष्णु और अन्य देवताओं को चुनौती दी और अराजकता फैलाना शुरू कर दिया।
भीम के अत्याचारों से देवता और मनुष्य दोनों परेशान हो गए। तब सभी देवताओं ने भगवान शिव से इस राक्षस का अंत करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने भीम को हराने के लिए कठोर तपस्या की और अंत में भीम से युद्ध किया।
इस घटना के बाद, भगवान शिव ने भीम का वध कर दिया और इस स्थान पर खुद को स्थापित कर लिया। इस प्रकार, इस स्थल को भिमाशंकर के नाम से जाना जाने लगा और यहाँ एक ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव (महाकाल) की पूजा की जाने लगी।
ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर शिवजी के क्रोध से उत्पन्न पसीने से भीमा नदी का उद्गम हुआ।