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सोलह सोमवार व्रत — पूरी विधि, नियम, कथा और लाभ

Mayank Sri Aug 11, 2025 0

सोलह सोमवार व्रत का आध्यात्मिक महत्वहिंदू धर्म में सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। शिव की भक्ति में रखा गया व्रत भक्त के जीवन में अनेक सकारात्मक बदलाव लाने वाला माना जाता है। विशेषकर सोलह सोमवार व्रत (16 Somvar Vrat) को अत्यन्त फलदायी माना जाता है — यह व्रत पारिवारिक समस्याएँ दूर करने, विवाह-संयोग बनवाने, संतान प्राप्ति, रोगमोचन और समग्र सुख-समृद्धि हेतु रखा जाता है। श्रद्धा और नियम के साथ किया गया यह व्रत भक्त को भगवान शिव की विशेष कृपा दिलाता है।

Table of Contents

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  • पौराणिक पृष्टभूमि और कथा
  • कब शुरू करें और कितने समय तक रखें
  • व्रत से पूर्व तैयारियाँ
  • रोज़ाना पालन करने वाले नियम (दिनचर्या)
  • पूजा सामग्री (उपकरण और समग्री)
  • सोलह सोमवार व्रत की सही पूजा-विधि (स्टेप बाय स्टेप)
  • यदि व्रत टूट जाए तो क्या करें?
  • सोलह सोमवार व्रत का समापन (उद्यापन) — क्या और कैसे करें
  • प्रमुख मंत्र और स्तोत्र (उच्चारण सहित)
  • व्रत के आध्यात्मिक और व्यावहारिक लाभ
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्रत का महत्व
  • कुछ प्रश्न/उत्तर (FAQs)
  • निष्कर्ष

पौराणिक पृष्टभूमि और कथा

सोलह सोमवार व्रत की महिमा का उल्लेख कई पुराणों और लोककथाओं में मिलता है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक निर्धन ब्राह्मणी अपनी अविवाहित कन्या के लिए विवाह साधने हेतु भगवान शिव की शरण में आती है। ब्राह्मणी को एक महात्मा ने सोलह सोमवार व्रत रखने की सलाह दी। श्रद्धा, भक्ति और नियमपूर्वक किए गए व्रत के फलस्वरूप कन्या की शादी संपन्न हुई और जीवन में समृद्धि आई। इसी प्रकार अनेक लोककथाएँ बताती हैं कि सोलह सोमवार व्रत से पति-प्रेम स्थिर होता है, संतान की प्राप्ति होती है और पारिवारिक कलह समाप्त हो जाते हैं। इन कथाओं ने पीढ़ियों तक इस व्रत की लोकप्रियता बनाए रखी है।

कब शुरू करें और कितने समय तक रखें

सोलह सोमवार व्रत को किसी भी शुभ समय में शुरू किया जा सकता है, परन्तु सबसे शुभ माना जाता है श्रावण मास का समय। आप किसी भी सोमवार से इसे आरम्भ कर सकते हैं, परंतु कई श्रद्धालु शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से आरम्भ करना शुभ मानते हैं। व्रत की अवधि लगातार 16 सोमवारों तक होती है — यदि किसी कारणवश बीच में रविवार टूट जाए तो इसे फिर से शुरू कर लेना चाहिए या ब्राह्मण को दान दे कर शांति करना चाहिए।

व्रत से पूर्व तैयारियाँ

1.व्रत शुरू करने वाले दिन से पहले घर-पूजा स्थान को स्वच्छ करें|

2. व्रत का संकल्प (संकल्प वाचन) लें — मन में निश्चय और श्रद्धा का संकल्प आवश्यक है।

3.व्रत करते समय सफेदी/सादे वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है; परन्तु यह अनिवार्य नहीं।

4.यदि संभव हो तो किसी योग्य पंडित या अनुभवी वृद्ध से निर्देश अवश्य लें; पर अकेले भी यह व्रत संभव है।

रोज़ाना पालन करने वाले नियम (दिनचर्या)

  • प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • शिवलिंग या शिवप्रतिमा के सामने पूजा करें।
  • यदि घर में शिवलिंग नहीं है तो शिव के प्रतापी रूप की तस्वीर के समक्ष भी पूजा मान्य है।
  • “ॐ नमः शिवाय” का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार करना उत्तम माना जाता है; कम से कम 21 बार करना भी लाभकारी है।
  • व्रत के दिन फलाहार (फल या सादे भोजन) रखने का परम्परागत नियम है; कई भक्त पूर्ण उपवास रखते हैं जबकि कुछ एक बार सात्विक भोजन करते हैं — यह शारीरिक स्थिति पर निर्भर करता है।
  • भोजन में मांस, मछली, प्याज-लहसुन, मदिरा आदि का परहेज़ रखें।
  • दिनभर अहिंसा, सत्य और नियंत्रण (ब्रह्मचर्य या आत्मनियमन) का पालन करें।

पूजा सामग्री (उपकरण और समग्री)

  • शिवलिंग या शिवपुत्र की तस्वीर/प्रतिमाबेलपत्र (कम से कम 3 पत्ते प्रति अर्पण)
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, नींबू/गंगाजल)
  • चंदन, भस्म (यदि उपलब्ध हो)
  • सफेद फूल, धतूरा (ध्यान से इस्तेमाल करें), रोली/कुमकुम, अक्षत (कच्चा चावल)दीपक (घी या तेल), अगरबत्तीफल, मिठाई (प्रसाद के लिए)
  • जल के लिए तांबे/कांसे का लोटा (यदि संभव हो)

सोलह सोमवार व्रत की सही पूजा-विधि (स्टेप बाय स्टेप)

संकल्प लें: सुबह स्नान के बाद शिव के समक्ष खड़े होकर व्रत का संकल्प लें — नाम, उद्देश्य और व्रत की अवधि का स्पष्ट जप करें।

अभिषेक करें: शिवलिंग पर गंगाजल और पंचामृत का अभिषेक करें। यदि शिवलिंग नहीं है तो तस्वीर पर पंचामृत चढ़ाएँ।

बेलपत्र अर्पण: प्रत्येक अर्पण में कम से कम तीन बेलपत्र चढ़ाएँ। गले में मौजूद व्रत सम्बन्धी मनोकामना का विचार करें।

मंत्र जाप: “ॐ नमः शिवाय” का जाप 108 बार (यदि स्वास्थ्य अनुमति दे) कर सकते हैं; अन्यथा 21, 27 या 51 बार भी करें। महामृत्युंजय मंत्र का 11 या 3 बार पाठ भी लाभदायक है।

भोग अर्पण: फल, जल और प्रसाद चढ़ाएँ। सात्विक पकवान जैसे खीर, फल, द्वारकाधीश मिठाई या हलवा अर्पित किया जा सकता है।

आरती: शाम के समय दीप, धूप से आरती करें और शिव चालीसा/स्तोत्र का पाठ करें।

दान-पुण्य: संभव हो तो रोजाना थोड़ी राशि या खाने का दान किसी जरूरतमंद को दें; विशेषकर व्रत के समापन पर बड़ा दान करना शुभ माना जाता है।

यदि व्रत टूट जाए तो क्या करें?

कई बार मजबूरी, रोग या अन्य कारणों से व्रत टूट सकता है। इस स्थिति में निम्न उपाय किए जा सकते हैं:

  • अगले सोमवार से व्रत फिर से आरम्भ करें (नया संकल्प लेकर)।
  • यदि बीच में टूटने पर आप व्रत जारी नहीं रख सकते, तो ब्राह्मणों को भोजन कराने और दान देने से भी दोष कम माना जाता है।
  • कुछ प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, यदि व्रत या संकल्प भंग हो जाए तो बकुला या कस्तूरी का दान करके मन को पुनः पवित्र बनाया जा सकता है।

सोलह सोमवार व्रत का समापन (उद्यापन) — क्या और कैसे करें

सोलहवें सोमवार पर विशेष पूजा विधि अपनाएँ:

  1. सुबह विशेष अभिषेक और पूजन करें।
  2. पंडित या कोई बुजुर्ग जोड़कर व्रत कथा सुनें — यदि संभव हो तो शिव पुराण का कोई अंश पढ़ें।
  3. ब्राह्मणों को भोजन कराकर आशीर्वाद लें या निर्धनों में अन्न/वस्त्र दान करें।
  4. प्रसाद बाँटें और भगवान शिव को धन्यवाद ज्ञापित करें।
  5. समापन के बाद घर-परिवार के साथ हल्का भोजन करें और श्रद्धा पूर्वक व्रत समाप्त मानें।

प्रमुख मंत्र और स्तोत्र (उच्चारण सहित)

ॐ नमः शिवाय — सबसे सरल और शक्तिशाली शिव मंत्र।

महामृत्युंजय मंत्र:ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||

शिव चालीसा और शिव स्तुति का पाठ विशेष पुण्यदायक है।

व्रत के आध्यात्मिक और व्यावहारिक लाभ

आध्यात्मिक शुद्धि: नियम और संयम से मन शुद्ध होता है, भक्ति की भावनाएँ प्रबल होती हैं।

मानसिक संतुलन: उपवास, ध्यान और मंत्रजप से तनाव घटता है, ध्यान-केंद्र बढ़ता है।

सामाजिक लाभ: दान-पुण्य से समाज में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।

परिवारिक शांत‌ि: दंपति व परिवार में मेल-मिलाप बढ़ता है।

स्वास्थ्य लाभ: नियंत्रित आहार और एकाग्रता से पाचन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्रत का महत्व

आधुनिक विज्ञान भी उपवास और ध्यान के कुछ फायदों को मानता है — नियंत्रित उपवास से पाचन तंत्र को आराम मिलता है, डिटॉक्सीफिकेशन होता है और मन की शांति से न्यूरोट्रांसमिटर्स का संतुलन सुधरता है। मंत्रजप और नियमित ध्यान से मनोवैज्ञानिक लाभ मिलते हैं जैसे कि चिंता कम होना और ग्राहक-सहनशीलता बढ़ना। हालांकि व्रत को धार्मिक परिप्रेक्ष्य में ही सबसे अधिक महत्व दिया जाता है, पर स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सतर्कता के साथ ही उपवास करना चाहिए। गर्भवती, स्तनपान कराने वाली महिलाएँ, या किसी गंभीर रोग से ग्रस्त व्यक्ति डॉक्टर की सलाह के बिना कड़ा उपवास न रखें।

कुछ प्रश्न/उत्तर (FAQs)

  • क्या पुरुष भी सोलह सोमवार व्रत रख सकते हैं? — हाँ, यह व्रत महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के लिए भी अत्यंत फलदायी है।
  • यदि किसी सोमवार मिलकर व्रत नहीं रख पाते तो क्या करें? — फिर से आरम्भ करें या दान-पुण्य द्वारा शांति करें।
  • क्या ऑनलाइन मंत्रजप/पूजा मान्य है? — घर पर स्वयं की भक्ति एवं नियम पालन सबसे मुख्य है; ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग सुगम समस्या के समय किया जा सकता है पर सच्ची श्रद्धा का होना जरूरी है।

निष्कर्ष

श्रद्धा, नियम और धैर्य का सामंजस्यसोलह सोमवार व्रत केवल एक बाहरी धर्मकर्म नहीं है; यह मन और जीवन को अनुशासित करने, आत्म-नियमन स्थापित करने और भगवान शिव की भक्ति से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का मार्ग है। यदि आपने यह व्रत करने का निश्चय किया है तो उसे पूरी श्रद्धा, नियम और धैर्य के साथ अवश्य रखें — फल निश्चित रूप से अनुकूल होगा।

Mayank Sri

Website: http://mahakaltemple.com

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