भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कहां हुआ था:जब आप सनातन धर्म के बारे में जितना जानना चाहेंगे उतना कम है ।यहां पर अलग-अलग अनोखी कहानी है जैसा कि हमारे महादेव की महिमाओं के बारे में जितना जानना चाहेंगे उतना कम ही होगा क्योंकि जब बात हमारे सनातन धर्म की सबसे पवित्र और एक आदर्श कथाओं की होती है तो भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह सबसे ऊपर आता है यह केवल एक विवाह नहीं था बल्कि तप, श्रद्धा , और भक्ति ,योग का अद्भभुत संगम था।
माता पार्वती का ताप और समर्पण : -
माता पार्वती जिन्होंने पूर्व जन्म में सती के रूप में शिव के साथ विवाह किया था। और उन्होंने अपने पति प्रेम में ही अपने प्राणों को त्याग दिया था वह सती हो गई थी फिर उसके बाद जब उन्होंने जन्म लिया तो वह पार्वती माता के रूप में महाराज हिमालय और मैंना की पुत्री के रूप में अवतरित हुई हैं। उनके जीवन का एकमात्र उपदेश था कि महादेव को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी और उन्होंने उनके लिए तब को स्वीकार कर लिया ।
माता पार्वती ने कठोर तपस्या की और वर्षों तक केवल जल और वायु और अंत में निराहार रहकर तप किया उनका तप इतना कठिन था कि देवताओं को उनके तप को देखकर अचंभा हुआ माता पार्वती महादेव को पाने के लिए कितना संघर्ष कर रही हैं और कितना तप कर रही है उनका तप बड़ा कठिन था।
शिव का हृदय परिवर्तन :-
भगवान महादेव को शमशान के राजा के रूप में भी जाना जाता है और लोग उनको महादेव के रूप में पूजते है। भगवान शिव एक ध्यान मग्न योगी थे सांसारिक बंधनों से परे लेकिन प्रेम ,भक्ति और तपस्या ने उन्हें प्रभावित किया।
देवर्षि नारद सप्त ऋषि और अन्य देवताओं के मध्य स्तर से यह विवाह संपन्न हुआ था ।
महादेव और माता पार्वती के शुभ विवाह का मुहूर्त और आयोजन : -
भगवान शिव की बारात अत्यंत विचित्र थी वहां भूतों ,पिशाच और नाग ,गंधर्व और अनेक विचित्र प्राणी उनके साथ थे माता मैना यह देखकर घबरा गई लेकिन पार्वती का विश्वास अडिंग था । विवाह विधि विधान से संपन्न हुआ स्वयं ब्रह्मा ने यह यजमान बनाकर विवाह कराया और विष्णु ने कन्यादान किया यह एक दिव्या आयोजन था जिसमें समस्त देवता ऋषि गंधर्व यक्ष और अप्सराय भी शामिल हुई। पूरी प्रकृति और सारी सृष्टि महादेव की शादी में और प्रकृति उत्साहित हो रही थी आकाश से फूलों की वर्ष होनी शुरू हो गई थी ।
शिव पार्वती आदर्श संपत्ति का प्रतीक:
भगवान शिव और माता पार्वती ही का विवाह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं था यह सनातन धर्म के लिए एक अनोखा संदेश था समर्पण धैर्य और प्रेम साधना से सब कुछ संभव है किस तरीके से माता पार्वती ने तब किया साधना की और भगवान के प्रति एक विश्वास था उनके हृदय में दृढ़ विश्वास और अटूट प्रेम था जिसकी वजह से यह विवाह संभव हुआ यह
विवाह इस बात का प्रतीक है कि योग और शक्ति जब तक साथ है तो उसे सृष्टि का संतुलन बना रहेगा
पार्वती विवाह का महत्व : -
- महाशिवरात्रि के दिन इस विवाह की विशेष पूजा होती है ।
- यह विवाह हर उस संस्कृति के लिए प्रेरणा है जो प्रेम प्रेम में श्रद्धा और विश्वास रखता है।
- यह विवाह बताता है कि सच्चे प्रेम के लिए समय तप और समर्पण जरूरी है ।
- महादेव और माता पार्वती के विवाह से यह समझ में आया कि जो महादेव का विवाह अनोखा प्रेम बंधन था इस प्रेम बंधन को कोई नहीं तोड़ सकता ।
- प्रेम में एक अटूट विश्वास होना चाहिए जो की महादेव और माता पार्वती के प्रेम में था ।
अंतिम विचार : -
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह केवल एक पौराणिक कथा नहीं है यह जीवन जीने की कला है हमें यह सिखाता है कि प्रेम केवल भावनाओं से नहीं बल्कि आत्मा से जुड़ा होता है और जब सच्चा प्रेम होता है तो ईश्वर भी साक्षी बनते हैं । जैसा कि मैं अपनी ब्लॉग में पहले ही बताया था कि आप जितना सनातन धर्म के बारे में जानना चाहेंगे उतना कम होगा क्योंकि सनातन धर्म अपने आप में एक रहस्य है जिसके बारे में आप जितना पढ़ेंगे उतना ही कुछ नया आपको जानने के लिए मिलेगा