डोल ग्यारस 2025 की तिथि है 3 सितंबर, बुधवार। जानें डोल ग्यारस व्रत का महत्व, पूजा विधि और धार्मिक मान्यताएँ।
भारत त्योहारों की भूमि है जहाँ हर पर्व का अपना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। इन्हीं में से एक है डोल ग्यारस (Dhol Gyaras), जिसे भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात में बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
डोल ग्यारस 2025 की तिथि
वर्ष 2025 में डोल ग्यारस का व्रत और उत्सव बुधवार, 3 सितंबर 2025 को मनाया जाएगा।
डोल ग्यारस का महत्व
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डोल ग्यारस को परिवर्तिनी एकादशी या जलझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
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मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने बालक श्रीकृष्ण का जलवा पूजन किया था।
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इस व्रत के प्रभाव से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
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इस दिन डोल (ढोल) और झांझ की ध्वनि के साथ भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के भजनों का गान किया जाता है।
डोल ग्यारस व्रत विधि
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प्रातःकाल स्नान कर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का पूजन करें।
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व्रत का संकल्प लेकर दिनभर फलाहार या निर्जल उपवास करें।
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शाम को भगवान का पंचामृत स्नान कराएं और पीले वस्त्र पहनाकर पूजन करें।
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धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करें।
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रात्रि में भजन-कीर्तन एवं आरती करें।
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अगले दिन द्वादशी को दान-पुण्य करके व्रत का पारण करें।
डोल ग्यारस की विशेषताएँ
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इस दिन मंदिरों में शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।
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गाँव-गाँव में डोल (ढोल) बजाकर भगवान की महिमा का गुणगान किया जाता है।
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इसे सामूहिक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है, जहाँ भक्तजन मिलकर नृत्य-गान करते हैं।
डोल ग्यारस केवल एक व्रत ही नहीं बल्कि आस्था, उत्सव और भक्ति का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा कर तथा उपवास रखकर भक्तजन सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
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