Skip to content
  • Friday, 26 September 2025
  • 8:42 pm
  • Follow Us
Bhasma Aarti & Daily Puja at Mahakal Temple
  • Home
  • Astrology
    • Free Janam Kundali
    • जानें आज का राशि फल
    • Route & Travel Guide
  • Home
  • जगन्नाथ मंदिर के तीनों देवताओं का रहस्य और प्रतीकात्मक अर्थ
  • Navratri 4th Day : नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा विधि, कथा और मंत्र
  • माँ ब्रह्मचारिणी : तपस्या और साधना का दिव्य स्वरूप
  • माँ चंद्रघंटा : शक्ति का दिव्य स्वरूप
  • नवरात्रि का तीसरा दिन: जानें माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि, व्रत कथा और मंत्र
  • नवरात्रि का दूसरा दिन – माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा
news

जगन्नाथ मंदिर के तीनों देवताओं का रहस्य और प्रतीकात्मक अर्थ

Mayank Sri Aug 13, 2025 0

Table of Contents

Toggle
  • जगन्नाथ मंदिर
  • मंदिर का पौराणिक इतिहास
  • तीनों देवताओं का स्वरूप और रंग का रहस्य
  • आध्यात्मिक प्रतीकात्मक अर्थ
  • नवकलेवर और मूर्तियों का परिवर्तन
  • रथ यात्रा और जनसमूह का उत्साह
  • अनंता वैभव का प्रतीक – महाप्रसाद
  • लोककथाओं और रहस्यों की दुनिया
  • आधुनिक युग में मंदिर का महत्व
  • निष्कर्ष

जगन्नाथ मंदिर

पुरी (ओडिशा) स्थित जगन्नाथ मंदिर न केवल भारत के चारधाम तीर्थों में से एक है, बल्कि यह हिन्दू धर्म की एक अद्वितीय आध्यात्मिक धरोहर भी है। इस मंदिर की महिमा इतनी व्यापक है कि इसे “जग का नाथ” यानी पूरे विश्व के स्वामी के रूप में जाना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं विराजमान हैं। इन तीनों मूर्तियों का स्वरूप, आकार और रंग साधारण मंदिरों में दिखने वाली मूर्तियों से बिल्कुल अलग है, और यही इसकी सबसे बड़ी रहस्यमयी विशेषता है।

मंदिर का पौराणिक इतिहास

जगन्नाथ मंदिर के इतिहास का उल्लेख पुराणों और स्थानीय लोककथाओं में मिलता है। स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार, सतयुग में राजा इंद्रद्युम्न को एक स्वप्न में भगवान विष्णु ने दर्शन देकर निर्देश दिया कि वे नीलांचल पर्वत पर आकर उनके रूप में एक मंदिर का निर्माण करें। उस समय भगवान विष्णु ने जगन्नाथ के रूप में अवतार लिया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान ने अपने इस स्वरूप में अपनी लीला और रहस्यों को लोक कल्याण के लिए प्रकट किया।

इतिहासकार मानते हैं कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा बनवाया गया। समय-समय पर इसमें कई राजाओं और भक्तों ने पुनर्निर्माण और विस्तार का कार्य किया। इसकी वास्तुकला, कलात्मक नक्काशी और आध्यात्मिक वातावरण इसे विश्व के सबसे अद्वितीय धार्मिक स्थलों में स्थान दिलाता है।

तीनों देवताओं का स्वरूप और रंग का रहस्य

जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में स्थापित तीन देवताओं की मूर्तियां लकड़ी से बनी होती हैं, जिन्हें ‘दरु ब्रह्म’ कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ का रंग काला है, जो ब्रह्मांड के अनंत और सर्वव्यापी स्वरूप का प्रतीक है। बलभद्र श्वेत रंग के हैं, जो शुद्धता, सत्य और शांति के प्रतीक हैं। देवी सुभद्रा का रंग पीला है, जो समृद्धि, उर्जा और मातृत्व का प्रतिनिधित्व करता है।

इन मूर्तियों की सबसे विशिष्ट विशेषता यह है कि इनमें हाथ और पांव पूरी तरह से निर्मित नहीं हैं। यह अधूरापन भगवान के उस अनंत और निराकार स्वरूप का प्रतीक है, जो सभी सीमाओं और बंधनों से परे है। इसका संदेश यह है कि परमात्मा का असली स्वरूप किसी आकार, सीमा या भौतिक बंधन में नहीं समा सकता, वह सदैव असीम और सर्वव्यापी है।

आध्यात्मिक प्रतीकात्मक अर्थ

तीनों देवताओं का एक साथ विराजमान होना, ब्रह्मांड में संतुलन और समरसता का संदेश देता है। बलभद्र धर्म और बल के प्रतीक हैं, सुभद्रा प्रेम और करुणा का प्रतिनिधित्व करती हैं, जबकि जगन्नाथ भक्ति और मोक्ष के मार्ग के प्रतीक हैं।

कहा जाता है कि यह त्रिमूर्ति मानव जीवन के तीन मुख्य तत्वों—शक्ति, प्रेम और भक्ति—को दर्शाती है। इन तीनों का संतुलन ही जीवन को सफल और अर्थपूर्ण बनाता है। यही कारण है कि जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने वाले भक्त केवल पूजा ही नहीं, बल्कि जीवन के उच्चतम आदर्शों को भी आत्मसात करते हैं।

नवकलेवर और मूर्तियों का परिवर्तन

जगन्नाथ मंदिर में एक अद्भुत परंपरा है जिसे ‘नवकलेवर’ कहा जाता है। यह परंपरा लगभग हर 12 या 19 साल में होती है, जब पुरानी मूर्तियों को बदलकर नई मूर्तियां बनाई जाती हैं। इस दौरान विशेष प्रकार के नीम के पेड़ (दारु) का चयन किया जाता है, जिन पर धार्मिक चिन्ह और शास्त्रीय लक्षण पाए जाते हैं।

मूर्तियों के अंदर स्थापित ‘ब्रह्म पदार्थ’ को पुराने विग्रह से निकालकर नए विग्रह में स्थानांतरित किया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह गोपनीय होती है और केवल चुनिंदा पुजारियों द्वारा की जाती है। इस रस्म का महत्व इतना है कि इसे ईश्वर के पुनर्जन्म के रूप में देखा जाता है।

रथ यात्रा और जनसमूह का उत्साह

जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है, जो हर साल आषाढ़ मास में आयोजित होती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा भव्य रथों में सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। लाखों श्रद्धालु इन रथों को खींचते हैं, और ऐसा माना जाता है कि रथ की रस्सी खींचने से पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रथ यात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भक्ति, एकता और समानता का प्रतीक है। इस दिन जाति, पंथ, वर्ग या देश का कोई भेदभाव नहीं होता—हर कोई एक साथ भगवान के रथ को खींचने में भाग लेता है।

अनंता वैभव का प्रतीक – महाप्रसाद

जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद भी उतना ही प्रसिद्ध है जितना मंदिर स्वयं। इसे ‘अन्न ब्रह्म’ कहा जाता है। भगवान को चढ़ाया गया भोजन सबके बीच समान रूप से बांटा जाता है, जो समानता और भाईचारे का संदेश देता है।

महाप्रसाद 56 प्रकार के व्यंजनों का मिश्रण होता है, जिसे ‘छप्पन भोग’ भी कहते हैं। यह न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि इसमें एक आध्यात्मिक अनुभूति भी होती है, जिसे खाने से भक्त ईश्वर की कृपा का अनुभव करते हैं।

लोककथाओं और रहस्यों की दुनिया

जगन्नाथ मंदिर से कई रहस्य जुड़े हुए हैं। जैसे—मंदिर का ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है, और सुदर्शन चक्र हर दिशा से देखने पर आपको सामने की ओर ही दिखाई देता है। इसके अलावा, मंदिर के ऊपर उड़ने वाला कोई पक्षी या विमान दिखाई नहीं देता—यह बात वैज्ञानिक और भक्त दोनों के लिए रहस्य है।

आधुनिक युग में मंदिर का महत्व

आज के समय में, जब भौतिकता और भागदौड़ जीवन में बढ़ गई है, जगन्नाथ मंदिर श्रद्धालुओं को शांति, संतुलन और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। यहां आने वाला हर व्यक्ति केवल दर्शन ही नहीं करता, बल्कि जीवन के गहरे मूल्यों को भी सीखकर जाता है।

निष्कर्ष

जगन्नाथ मंदिर और इसके तीनों देवताओं का स्वरूप केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन के गहरे रहस्यों और आदर्शों का सजीव उदाहरण है। इनके रंग, आकार और परंपराएं हमें यह सिखाती हैं कि ईश्वर निराकार होते हुए भी हमारे जीवन में साकार रूप में प्रकट हो सकते हैं। यहां का हर दर्शन, हर प्रसाद और हर परंपरा इस बात का प्रमाण है कि भक्ति, प्रेम और सत्य का मार्ग अपनाने वाला ही सच्चे अर्थों में ‘जग का नाथ’ के आशीर्वाद का पात्र बनता है।

Mayank Sri

Website: http://mahakaltemple.com

Related Story
Navratri 4th Day : maa kushmanda
news
Navratri 4th Day : नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा विधि, कथा और मंत्र
Mayank Sri Sep 25, 2025
news
माँ ब्रह्मचारिणी : तपस्या और साधना का दिव्य स्वरूप
Pinki Mishra Sep 24, 2025
news
माँ चंद्रघंटा : शक्ति का दिव्य स्वरूप
Pinki Mishra Sep 24, 2025
news
नवरात्रि का तीसरा दिन: जानें माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि, व्रत कथा और मंत्र
Mayank Sri Sep 23, 2025
माँ ब्रह्मचारिणी
news
नवरात्रि का दूसरा दिन – माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा
Mayank Sri Sep 23, 2025
नवरात्रि
news
नवरात्रि का पहला दिन: करें माँ शैलपुत्री की पूजा
Mayank Sri Sep 22, 2025
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम्
news
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् | ‘अयि गिरिनन्दिनी…’ आदि शंकराचार्य कृत माँ दुर्गा की स्तुति
Mayank Sri Sep 21, 2025
श्री हनुमान साठिका : संकटमोचन का दिव्य स्तोत्र
news
श्री हनुमान साठिका : संकटमोचन का दिव्य स्तोत्र
Mayank Sri Sep 21, 2025
नवरात्रि 2025
news
नवरात्रि 2025: व्रत और कलश स्थापना की पूरी विधि
Mayank Sri Sep 20, 2025
शिव
news
क्यों शिव बने नटराज: जानिए तांडव के पीछे का आध्यात्मिक संदेश
Mayank Sri Sep 19, 2025

Leave a Reply
Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

YOU MAY HAVE MISSED
Navratri 4th Day : maa kushmanda
news
Navratri 4th Day : नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा विधि, कथा और मंत्र
Mayank Sri Sep 25, 2025
news
माँ ब्रह्मचारिणी : तपस्या और साधना का दिव्य स्वरूप
Pinki Mishra Sep 24, 2025
news
माँ चंद्रघंटा : शक्ति का दिव्य स्वरूप
Pinki Mishra Sep 24, 2025
news
नवरात्रि का तीसरा दिन: जानें माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि, व्रत कथा और मंत्र
Mayank Sri Sep 23, 2025