
सत्यनारायण व्रत कथा का पहला अध्याय
सत्यनारायण व्रत कथा का पहला अध्याय जिसमें बताया गया है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, 88,000 ऋषियों ने श्री सूद जी से पूछा प्रभु इस कलयुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु की भक्ति के लिए किस प्रकार मिल सकता है तथा उनका उधर कैसे होता है मुनिशेष ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे थोड़े ही समय में है मनुष्य को मनमंचित फल की प्राप्ति हो और पुण्य भी मिले।
भगवान सत्यनारायण की संपूर्ण कथा सुनने के बाद आपकी इच्छा भी पूरी होती है और शास्त्रों के प्रातः सूजी ने बताया कि है वैष्णो पुणे आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी इसलिए मैं आपको एक ऐसा श्रेष्ठ व्रत बता देता हूं जिसको करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है ।
इस कथा को सुनने की इच्छा रखने वाले सर्वश्रेष्ठ शास्त्रों को जानने वाले सूज बोल ही वैष्णो पुण्य आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं इस सर्वश्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊंगा कि जैसे जिससे नारद जी ने लक्ष्मी जी से पूछा था और लक्ष्मी जी ने मुनि शेष नारायण जी से कहा आप इसे ध्यान से सुनिएगा ।
एक समय की बात होती है जब नारद जी की दूसरों के हित की इच्छा को लिए हुए सब जगह घूमते रहे और मृत्यु लोक में पहुंच गए । जहां पर उन्होंने अनेक योगो में जन्म पत्र आए सभी मनुष्यों को अपने कर्मों के द्वारा अनेक दुखों से पीड़ित देखा अतः दुख देखकर नारद जी की सोने वालों की कोई ऐसा उपाय किया जाए जिससे मनुष्य के पापों का अंत हो इसी विचार पर मन बनकर वह विष्णु लोग पहुंचे । वहां जाकर उन्होंने देखा भगवान नारायण की स्तुति करने लगे जिस हाथ में शंख चक्र गधा और पद्म थे गले में वरमाला पहना हुए थे।
भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए नारद जी बोले हे भगवान आप अत्यंत शक्तिशाली ही तो सब शक्तियों से संपन्न है मां तथा बड़ी भी आपको नहीं पा सकते आपका यदि मध्य तथा अंत नहीं है। निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुखों को दूर करने वाले हैं आपको मेरा नमस्कार नारद जी की स्तुति सुनकर भगवान विष्णु बोल ही मुनिशेष आपके मन में क्या बात है आप किस काम के लिए यहां पधारे हैं उसे अपनी संकोच होकर मुझे बताइए।
इस पर नारद जी बोले की मृत्यु लोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य किसी न किसी कर्मों के का के द्वारा अपनी दुखों से दुखी हो रहे हैं हे नाथ आप मुझ पर दया करते हैं तो बताइए की वह मनुष्य थोड़े प्रयास करने से अपने दुखों को दूर कर पाएंगे।
श्री हरि बोले हैं नारद मनुष्यों की भलाई के लिए आपने बहुत अच्छी बात पूछी है। नारद जी से श्री हरि की बोले कि मनुष्य इसको करने से मुंह से छूट जाता है वह बात में कहता हूं उसे सुनो स्वर्ग लोक या मृत्यु लोग दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो मनुष्य को मनमंचित फल देता है। श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत अच्छी तरह से विधि विधान पूर्वक करने से मनुष्य तुरंत ही यहां सुख होकर करने पर मोक्ष प्राप्त करता है।
श्री हरि के वचन को सुनकर नारद जी बोले कि इस व्रत का फल क्या है और इसका विधि विधान क्या है यह व्रत किसने किया था इस व्रत को किस दिन करना चाहिए सभी की कुछ विस्तार से बताइए श्री हरि प्रश्न बोले।
मनुष्य को भक्ति व श्रद्धा भाव के साथ शाम को श्री सत्यनारायण की पूजा धर्म और प्रणाम होकर ब्राह्मण व बांधों के साथ करनी चाहिए भक्ति भाव से ही नावेद किला का फल घी दूध और गेहूं का आता सवाया लें और गेहूं के स्थान पर साथी का आता शक्कर अच्छा लेकर सभी भाषण योग्य पदार्थ को मिलाकर भगवान को भोग लगाये ।
ब्राह्मण सहित बंधु बांधों को भी भोजन कारण उनके बाद स्वयं भोजन करें भजन कीर्तन के साथ भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो जाए इस तरह से सत्यनारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छाएं निश्चित ही पूरी होती हैं। इस कलयुग में मृत्यु लोक में मोक्ष पाने के लिए
एक सरल उपाय है जो मैं आपको बता रहा हूं
“॥श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पहला अध्याय संपूर्ण॥ बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय।“

श्री सत्यनारायण व्रत का दूसरा अध्याय
सूत बोल ही ऋषियों जिनके जिसमें पहले समय में इस व्रत को किया है उसका इतिहास कहता हूं उसे ध्यान पूर्वक सुना सुंदर काशी पूरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था भूख प्यासी परेशान वह धरती पर घूमता रहता था।
ब्राह्मणों की प्रेम से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का बेस धारण करके उसके पास जाकर पूछ है विप्र। तुम रोज दुखी होकर इस पृथ्वी पर क्यों घूमते हो दिन ब्राह्मण बोला मैं निर्धन हूं |
ब्राह्मण भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूं हे भगवान यदि इसका कोई उपाय जानते हो तो मुझे बताइए जिससे मैं अपने पापों से मुक्त हो सकूं व्रत बूढ़ा ब्राह्मण बोला की सत्यनारायण भगवान मनु मानसी वांछित फल देने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो इसे करने से मनुष्य के सारे दुखों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है |
वृद्ध ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उसे निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधि विधान समझाया और अंतर ध्यान हो गए ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को व्रत ब्राह्मण करने के लिए बोल रहे हैं मैं उसे जरूर करूंगा यह निश्चित करने के बाद उसे रात में नींद आई नींद नहीं आई वह सवेरे जल्दी उठकर सत्यनारायण भगवान की व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिएचला गया |
उसे दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला जिससे उसने अपने बंधु शाखों को साथ मिलकर सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया हो भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण दुखों से मुक्ति मिल गई और उसने अनेक प्रकार की संपत्तियों को प्राप्त भी किया |
इस समय से यह ब्राह्मण हर महा इस व्रत को करने लगा इस तरह से सत्यनारायण भगवान व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के कासन से दूर होगा साथ ही उसे दुखों से मुक्ति भी मिल जाएगी शूज जी बोले कि इस तरह नारद जी ने नारद जी से भगवान विष्णु ने जो व्रत को करने करने के लिए मनुष्यों को बताया वह सभी प्रकार के पापों से मोक्ष प्राप्त होता है जो मनुष्य इस व्रत को विधि विधान से करता है सभी दुखों से मुक्ति होती है |
सूरत जी बोले इस तरह नारायण भगवान जी ने नारायण जी से कहा हुआ श्री सत्यनारायण व्रत को मैंने तुमसे कहा है है मित्र में अब और क्या कहूं ऋषि बोले हैं मुनिवर संसार में उसे विप्र से सुनकर और किस-किस में इस व्रत को किया यह सब बाद में तुमको सुनना चाहता हूं इसके लिए अपने मन में श्री हरि विष्णु को श्रद्धापूर्वक भाव से नमस्कार करो |
सूरत बोले हैं मुनि जी जिसने इस व्रत को किया है वह सब सुनाओ इस एक समय वही विपरीत धन व ऐश्वर्य के अनुसार अपने बंद बंधु बांधों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ इस समय एक लड़की बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लड़कियां बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया प्यार से दुखी बहन लकड़हारा उसने व्रत करते हुए विप्र ब्राह्मण को नमस्कार कर पूछने लगा की है ब्राह्मण आप किस ग्रह को कर रहे हैं |
इस व्रत को कैसे किया जाता है इसका क्या फल मिलता है मुझे बताइए ब्राह्मण ने कहा कि यह व्रत सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है इस दिन की कृपा से मेरे घर में धन-धान्य में वृद्धि हुई है |
बूढ़ा प्रशांत के साथ दम दम लेकर केले शक्कर घी दूध दही और गेहूं का आटा ले सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियां लाकर अपने घर अपने मित्रों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान की व्रत को किया और इस प्रकार बुरा लग रहा है धंधा ने धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुखों को भोगने लगा था |
”श्री सत्यनारायण व्रत का दूसरा अध्याय संपूर्ण हुआ बोलिए क्षेत्रीय सत्यनारायण भगवान की जय“!

सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का तीसरा अध्याय :-
सूत बोले हैं श्रेष्ठ मुनियों अब आगे की कथा कहता हूं पहले समय में उसका मुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था वह सत्य है वक्त और जितेंद्र था यह प्रतिदिन देव स्थलों पर जाता था और निर्धनों को धन देकर उसके कष्ट दूर करता था उसकी पत्नी कमला के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी भद्राशील नदी के तट पर उन दोनों ने श्री सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा को किया |
इस समय साधु नाम का एक वैश्या वहां आया उसने व्यापार करने के लिए बहुत सारा धन को खट्टा कर लिया था उसी समय साधु नाम का एक वैश्या आया उसे राजा को व्रत करते हुए देखा वह विप्र विनम्र सेठ के साथ पूछने लगा ही राजन भक्ति बात से आप जिस व्रत को कथा को कह रहे हैं मैं सुनना चाहता हूं आप मुझे बताइए
| राजा बोले हे साधु अपने अपने परिवार और मित्रों के साथ पुत्र प्राप्ति के लिए यह एक महान शक्तिमान श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत वह पूजन कर रहा हूं राजा के वचन सुनकर साधु आधार से बोला राजन मुझे इस व्रत का सारा विधि विधान बताइए इसमें आप के कथा अनुसार में इस व्रत को करूंगा मेरी भी संतान नहीं है इस व्रत को करने से निश्चित रूप से ही मुझे संतान की प्राप्ति होगी राजा से यह सब बात सुनकर व्यापारी ने इस व्रत को विधि विधान से किया |
साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का पूरा वर्णन सुनाया और कहा कि मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करूंगा साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कह एक दिन लीलावती पति के साथ अनाड़ी हो सांसारिक धर्म में प्रवक्त होकर सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई दसवें महीने में उनके गर्व से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ |
दिनों दिन वह कन्या बढ़ाने बढ़ती चली जा रही थी कि जैसे की शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है माता-पिता अपनी कन्या का नाम कलावती रख देते हैं | एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान की व्रत को करने के लिए संपर्क संकल्प लिया हुआ था आज हमारी ही बेटी भी बहुत बड़ी हो गई है |
आप इस व्रत को कीजिए साधु बोला कि है विपरीत इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करूंगा इस प्रकार अपनी पत्नी की को आश्वासन देकर वह नगर से चल गया कलावती अपने पिता के घर में वृद्धि को प्राप्त हो गई |
साधु ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूध को बुलाया कहा कि मेरे कन्या के योग्य बार देखकर आओ साधु की बात सुनकर दूध कंचन नगर में पूजा पहुंचे और वहां पर देखभाल कर लड़की के सुयोग्य मानिक पुत्र को ले आए |
सुयोग्य मानिक पुत्र लड़के को वह देखकर साधुओं ने बंधु बांधों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया लेकिन दुर्भाग्य दिवस वह यह बात भूल गया कि उसने श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत करने का वचन लिया था
इस प्रकार श्री भगवान क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि ही साधु को अत्यंत दुख मिले अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाई को लेकर समुद्र के पास स्थित होकर रत्न सहारनपुर नगर में गया |
वहां जाकर दामाद और ससुर व्यापार करने के लिए निकल पड़े दोनों मिलकर चंद्र केतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे एक दिन सत्यनारायण भगवान की माया से एक कर राजा का धन चुराकर भाग था और वह भाग कर व्यापारी के पास जाकर छुप गया उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते हुए है धन बाहर रख दिया जहां पर साधु अपने जमाई के साथ बैठा हुआ था राजा ने सिपाहियों से पूछा साधु वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो ससुर जमाई दोनों को बंदी बनाकर प्रसन्नता से राजा के पास ले आए और कहा कि इन दोनों ने चोरों को हमने पकड़ लिया है आप आगे की कार्रवाई कीआज्ञा दें |
राजा की आज्ञा से दोनों को कठिन करवा में डाल दिया गया और उस उनका सारा धन छीन लिया गया राजा ने अपने धनकोष में जमा कर दिया शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा बस भूख से प्यास भूख प्यास से आती दुखी होकर अन्य की चिंता में कलावती एक ब्राह्मण के घर गई वहां उसने सत्यनारायण भगवान की कथा को सुना फिर वहां वहां वह कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर रात को घर वापस आई माता ने कलावती से पूछा कि है पुत्री तुम अब तक कहां थी तेरे मन में क्या है |
कलावती ने अपनी माता से पूछा है माता मैंने एक ब्राह्मण के घर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है कन्या के वचन सुनकर लीलावती ही भगवान के पूजन की तैयारी करने लगी लीलावती में ने परिवार व बांधों को बुलाकर सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे बार मांगा की मेरे पति और जमाई शीघ्र ही घर आ जाए साथ ही यह प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमाकरें |
श्री सत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट होकर उसे राजा चंद्र केतु को सपने में दर्शन देकर कहा कि है राजन तुम दोनों वैश्यों को छोड़ दो और तुमने उसका जो धन लिया है वह भी उसे वापस कर दो अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हें तुम्हारा धनराज संतान सभी को नष्ट कर दूंगा राजा को यह सब कहकर वह अंतर्ध्यान हो गए |
प्रातः काल में जब राजा ने अपने अपने सपने को अपने गुरु जी को अपना सपना बताया तो गुरुजी ने उसे उन्हें तुरंत उसे वैश्य और उसके जमाई को छोड़ने के लिए कहा उनकी आज्ञा पाकर उनके राजा की सिपाही उसे वैश्य और उसके जमाई को लाकर राजा के दरबार में खड़ा कर दिया गया राजा को को देखकर दरबार में वैश्य और उसके जमाई ने के राजा को प्रणाम किया और राजा मीठी वाणी में बोला है महानुभावों भाग्य बस ऐसा कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ लेकिन अब तुम्हें कोई ही बहन नहीं है । ऐसा कह कर राजा ने उन दोनों को नए वस्त्र आभूषण और गहने दिए और उन्हें दो गुना धन देकर वापस किया दोनों वैश्य अपने घर को चल दिए।
“श्री सत्यनारायण भगवान का तीसरा अध्याय संपूर्ण हुआ बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।“
सत्यनारायण भगवान की कथा का चौथा अध्याय :
सूत की बोल पैसे ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिया उसने थोड़ी दूर जाने के बाद एक डंडी भेज धारी श्री सत्यनारायण भगवान ने पूछा हे साधु तेरी नाव में क्या है आदि अभी वाणी वनिक हंसता हुआ बोला है डंडी आप क्यों पूछते हो क्या धन लेने की इच्छा है मेरी नाम में तो बेल पति भरे हुए हैं वैसे के कठोर वचन सुनकर भगवान बोले तुम्हारा वचन सत्य हो दांडी ऐसा वचन कहकर वहां से चले गए कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए |
दांडी ने जा के जाने के बाद साधु और वैसे ने नित्य क्रिया के बरसात नव नाव में देखा कि ही वहां सच में है पेट भरे हुए हैं और बेलपत्र देखकर वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गया ।
मोर्चा खोलने के लिए वह अत्यंत शोक में डूब गया तथा उसका दामाद बोला कि आप शक ना मने यह डांडी का शाप है इसलिए है इनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूर्ण होगी |
दामाद की बात सुनकर वह डंडी के पास जा पहुंचे और अत्यंत भक्ति भाव से नमस्कार करके बोले महाराज मैंने आपसे जो जो सत्य वचन कहे थे उसके लिए मुझे क्षमा कर दें ऐसा कहकर रोने लगा। भगवान दांडी बोल ही वनिक पुत्र मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है |
तुम मेरी पूजा शिव मुख हुए और साधु बोला है भगवान आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं पहचान सकते तो मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूं आप प्रसन्न हो जाइए अब मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूंगा और मेरी रक्षा करो पहले नौका में धन भर दो।
वैश्या की बात सुनकर साधु ने भक्ति पूर्वक वचन कर भगवान को प्रसन्न हो जाए उनकी इच्छा अनुसार वरदान देकर अंतर ध्यान हो गए ससुर जमाई जब नाव पर आए |
उन्होंने धन से भरी हुई ही नाव को देखा फिर वह अपने अन्य साथियों के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन करने की कर अपने नगर की ओर चल दिए तब नैना नगर के नजदीक ही पहुंचे ही थे ही तो दूध को घर खबर करने के लिए भेज दिया दूध साधु की पत्नी को प्रणाम करके बोला की मालकिन आपके दामाद सहित नगर के निकट आ गए हैं।
दूध की बात सुनकर साधु की पत्नी लीलावती बड़े हर्ष से सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपनी पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति को के दर्शन के लिए जाती हूं तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र ही आज माता के वचन सुनकर कलावती भी जल्दी ही में प्रसाद को छोड़कर अपने पति के पास चली गई प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्री सत्यनारायण भगवान फिर से रुष्ट हो गए और नव सहित उसके पति को पानी में डूबा दिया कलावती ने अपने पति को न पाकर वहां रोती हुई जमीन पर गिर गई |
नौका डूबा हुआ देखकर वह कन्या रोते हुए साधु दुखी होकर बोला कि हे प्रभु मुझे तथा मेरे परिवार से ऐसी क्या भूल हुई है उसे क्षमा कर दीजिए साधु के दिन वचन सुनकर श्री सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई की है साधु तेरी कन्या मेरी प्रसाद को छोड़कर आ गई है इसलिए उसका पति आदर्श हो गया है यदि वह घर जाकर फिर से प्रसाद खाकर लौटेगी तो उसका पति वापस अवश्य मिलेगा |
ऐसी आकाशवाणी सुनकर कलावती घर पहुंची और प्रसाद खाती है और फिर वहां जाकर अपने पति के दर्शन करती है उसके बाद साधु अपने मित्रों के साथ श्री सत्यनारायण भगवान के व्रत को विधि विधान के साथ पूजा करते हैं इस लोग का सुख भोग वह अंत में स्वर्गको प्राप्त।
श्री सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का पांचवा :-
सूजी बोले हे प्रभु मेरे ऋषियों में जो भी एक कथा सुनता हूं उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया।
एक बार बन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर बड़े पेड़ के नीचे आ गया वहां उसने ग्वालो को भक्ति भाव से अपनी बांधो साहित्य सत्यनारायण की पूजा करते हुए देखा अभियान वर्ष राजा ने पूछा की पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही हुई उसने भगवान को नमस्कार किया ग्वालो ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद भी नहीं खाया और प्रसाद वहीं छोड़कर अपनी नगर को चला गया। राजा जब नगर पहुंचा तो उसने वहां देखा नगर में तबाही मची हुई थी |
राजा जब नगर पहुंचा तो उसने वहां देखा नगर में तबाही मची हुई थी तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने किया है वह दोबारा वालों के पास गया और विधिपूर्वक पूजा करने का करने का विधि विधान पूछा उसके बाद उसने प्रसाद को खाया तो सत्यनारायण भगवान की कृपा से उसका राज्य पहले जैसा हो गया और उसे दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
जो मनुष्य अपनी दुखों से परेशान हो वह इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन्य धन्य की प्राप्ति होगी निर्धन धनी हो जाएगा और वह मुक्त हो |
वह मुक्त हो हो जीवन जीता है संतानहीन को संतान की प्राप्ति का सुख मिलता है और सारी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर मनुष्य अंत काल में बैकुंठ के धाम को प्राप्त करता है।
सूजी बोले उन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके द्वारा दूसरे जन्म की कथा कहता हूं एक बाद सनातन ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की लखन हरि ने अगले जन्म में निषाद बनाकर मोक्ष प्राप्त किया उनका मुख्य नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए और साधु नाम के वैद्य ने मनोज ध्वज बनाकर अपने पुत्र को आर्य से क्या कर मोक्ष प्राप्त पाया महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया।
“॥श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पांचवा अध्याय संपूर्ण॥ बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय।“