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धार्मिक त्योहार

जन्माष्टमी 2024: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कब है? पूजन के शुभ मुहूर्त और व्रत पारण का समय जानें

Mahakal Aug 20, 2024 0

Table of Contents

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  • जन्माष्टमी का महत्व
  • श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि
  • शुभ मुहूर्त: पूजा और व्रत का समर्पण
  • व्रत और इसके नियम
  • मध्यरात्रि जन्मोत्सव का विशेष महत्व
  • भक्तों के विशेष आयोजन
  • व्रत पारण का समय और विधि

जन्माष्टमी का महत्व

जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के अवसर पर मनाया जाता है। श्रीकृष्ण Janmashtami 2024 हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक श्रीकृष्ण के अवतार को समर्पित है और इसे विष्णु के अवतार के रूप में भी माना जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व केवल उनके जन्म से जुड़ा हुआ नहीं है; यह त्योहार प्रेम, भक्ति, और आनंद का प्रतीक है, जो लोगों के जीवन में आस्था और आध्यात्मिक विकास लाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारावास में हुआ था। उनके जन्म के समय, उनकी माता देवकी और पिता वासुदेव को कारावास में बंदी बनाया गया था। श्रीकृष्ण के जन्म के साथ, अनेक दैवीय घटनाएं घटीं जो यह दर्शाती हैं कि श्रीकृष्ण ईश्वर के अवतार थे। उनके जन्म के समय कारावास के द्वार अपने आप खुल गए और वासुदेव जी उन्हें गोकुल में यशोदा और नंद बाबा के पास सुरक्षित रूप से ले गए। यह कथा लोगों में आशा, उद्धार और अच्छाई की जय के रूप में देखी जाती है।

जन्माष्टमी का त्योहार भक्ति और अनुष्ठानिक महत्व से भरपूर होता है। इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजन और आरती का आयोजन किया जाता है, और भक्ति गीतों के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान किया जाता है। मीठे पकवान, विशेषकर माखन मिश्री, जो भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय थे, का भी वितरण होता है। रातभर चलने वाले इन अनुष्ठानों में प्रमुख रूप से आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण की आरती का आयोजन होता है, जो उनके जन्म का समय माना जाता है।

इस प्रकार, जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है; यह व्यक्तियों को आंतरिक शुद्धि, विश्वास, और समर्पण का प्रतीक है। यह त्योहार लोगों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करता है, और उनके जीवन में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों को आत्मसात करने का एक अवसर प्रदान करता है।

Janmashtami 2024, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का त्योहार, जो कि बहुत ही उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, की सही तारीख और समय जानना बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष, जन्माष्टमी 2024 का पर्व 26 और 27 अगस्त को मनाया जाएगा, जिसमें 26 अगस्त को स्मार्त और 27 अगस्त को वैष्णव मत के लोग अपने-अपने विधि-विधान अनुसार जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे।

श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 26 अगस्त को 11:25 बजे सुबह से हो जाएगा और इसका समापन 27 अगस्त को 1:06 बजे दोपहर को होगा। जन्म के सही समय का मुहूर्त जानना पूजा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस बार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त मध्य रात्रि 12:00 से 12:48 बजे तक का होगा। इसलिए भक्तजन इस समय की महत्ता को ध्यान में रखकर अपनी पूजा और व्रत का पालन कर सकते हैं। यह समय काल को मध्य रात्रि का तुला लग्न कहा जाता है, जो कि श्रीकृष्ण के जन्म के समय के समान होता है।

इसके अलावा, व्रत पारण का समय भी धर्मग्रंथों के अनुसार महत्वपूर्ण होता है। अगले दिन, व्रत पारण का समय 27 अगस्त को दोपहर 12:05 बजे से लेकर 1:51 बजे तक रहेगा। भक्तजन सुबह स्नान करके भगवान श्रीकृष्ण का पूजन और अर्चन करने के बाद उपरोक्त पारण के समय पर व्रत खोल सकते हैं।

समापन में, जन्माष्टमी की तिथि और समय के प्रति यह जानकारी रखना महत्वपूर्ण है, जिससे भक्तजन सही समय पर पूजा और व्रत कर सकें और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करें। उपरोक्त समय का पालन करने से आपकी आध्यात्मिक साधना को सही दिशा मिलेगी और भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होगा।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विधि विशेष महत्व रखती है। इस शुभ दिन पर भक्तगण सजग होकर भगवान की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के लिए सबसे पहले आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करना महत्वपूर्ण है, जिसमें मुख्यतः तुलसी पत्र, पुष्प, पंखा, बांसुरी, माखन मिश्रित चीनी, मेवे, फल, धूप, अगरबत्ती, दीपक, और गंगाजल शामिल होते हैं।

पूजा की प्रारंभिक विधि में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को स्वच्छ जल से स्नान कराकर नवीन वस्त्र पहनाए जाते हैं। इसके बाद, श्रीकृष्ण की मूर्ति को सजाया जाता है और उन्हें आसन पर विराजमान किया जाता है।

पूजा एवम् आराधना के चरण इस प्रकार होते हैं: सबसे पहले दीप प्रज्वलित किया जाता है और पवित्र गंगाजल से छिड़काव कर पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है। तत्पश्चात्, पूजन सामग्री के साथ भगवान श्रीकृष्ण को नैवेद्य अर्पित करते हुए उन्हें भोग लगाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है।

फिर, शंख और घंटी नाद के बीच भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारी जाती है। आरती के समय ‘ओम कृष्णाय नमः’ मंत्र का उच्चारण किया जाता है। श्रीकृष्ण को तुलसी पत्र अर्पित करना अति महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह भगवान को अत्यंत प्रिय है।

आरती के पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण का प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरण किया जाता है और भक्तगण आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रकार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि सम्पूर्ण की जाती है और भक्तगण भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए उनके नाम का जप और भजन-कीर्तन करते हैं।

शुभ मुहूर्त: पूजा और व्रत का समर्पण

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2024 के अवसर पर शुभ मुहूर्त में पूजा और व्रत का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि सही समय पर पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। 2024 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त 19 अगस्त को रात 11:45 मिनट से 12:30 मिनट तक रहेगा। यह समय ही भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का माना जाता है, और इस दौरान पूजा करना अत्यंत फलदायी होता है।

इस पवित्र समय में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को सजाना, उनके जन्म की कहानी सुनाना, मंत्रों का पाठ करना, और आरती करना प्रमुख होता है। पंचामृत से अभिषेक कर, श्रीकृष्ण को मक्खन और मिश्री का भोग लगाया जाता है। भक्त जन श्रीकृष्ण की आराधना में तन्मय होकर प्रसन्नता प्राप्त करते हैं और उन पर अपनी भक्ति अर्पित करते हैं।

व्रत रखने वाले भक्तों के लिए विधि-विधान का पालन करना आवश्यक होता है। व्रत का प्रारंभ रात्री को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव के बाद ही होता है। वे अन्न एवं जल का त्याग करते हैं और केवल फल एवं दूध का सेवन करते हैं। अगली प्रातः द्वादशी तिथि को व्रत का पारण कर, प्रभु को पंचामृत, मिठाई और नवधा भोग अर्पित किया जाता है। व्रत धर्मानुसार रखते हुए हृदय की पवित्रता और श्रद्धा का संपूर्ण पालन करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का यह उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक सन्देश भी देता है कि भगवान की भक्ति में ही सच्ची खुशी छिपी है। अतः शुभ मुहूर्त का सही समय और विधि अनुसार पूजा और व्रत आराधना करके भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करना चाहिए।

व्रत और इसके नियम

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए अत्यंत श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। इस व्रत को रखने वाले भक्त जन श्रीकृष्ण के प्रति अपनी निष्ठा और समर्पण प्रकट करते हैं। व्रत की अवधि मुख्यतः मध्यरात्रि से अगले दिन की मध्यरात्रि तक होती है, जो कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का समय माना जाता है।

व्रत के दौरान, भक्तों को उपवास रखते हुए भोजन और जल का त्याग करना चाहिए। यद्यपि, स्वास्थ्य कारणों से कुछ चीजें अनुमत होती हैं, जैसे कि फल, दूध, और मखाने। व्रत के दौरान अनाज, नमक, और अन्न का सेवन वर्जित माना जाता है।

व्रत का पालन करते समय भक्तों को शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पूजा में उपयोग होने वाले सभी सामग्री, जैसे फूल, फल, और वस्त्र, को शुद्ध और साफ होना जरूरी है। व्रत के दौरान अल्कोहल और तंबाकू का सेवन सख्त रूप से वर्जित है, और मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत के नियम अन्य धार्मिक व्रतों के समान होते हैं, जिनका अनुसरण करते हुए भक्तों को अपने इष्टदेव के प्रति श्रद्धा और भक्ति की भावना को बनाए रखना चाहिए। इसके साथ ही, तुलसी के पत्तों का सेवन करना वर्जित है, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण तुलसी माता को अत्यधिक सम्मान देते हैं।

अंततः, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत के नियमों का पालन न केवल भक्तों को आध्यात्मिक सुख देता है बल्कि उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधरता है। इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से रखते हुए भक्त अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।

मध्यरात्रि जन्मोत्सव का विशेष महत्व

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसका मध्यरात्रि जन्मोत्सव विशेष रूप से महत्व रखता है, क्योंकि इसे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का समय माना जाता है। इस पावन अवसर पर भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को सजीवता प्रदान की जाती है। मंदिरों और घरों में झांकियों के माध्यम से नंदगांव और गोकुल का वातावरण रचा जाता है। लोग सुन्दर सजावट और रोशनी से अपने घरों और मंदिरों को सजाते हैं, जो इस आध्यात्मिक पर्व की महिमा को और भी बढ़ा देते हैं।

भजन-कीर्तन और धार्मिक गीत इस उत्सव का अभिन्न अंग हैं। भक्तजन पूरे दिन और रात भजन-कीर्तन में व्यस्त रहते हैं, जिससे वातावरण आध्यात्मिकता और भक्ति मय हो जाता है। “श्रीकृष्ण गोविंदा, हरे मुरारी” जैसे भजन और कीर्तन जन्माष्टमी के आध्यात्मिक आनंद को उजागर करते हैं, जिसमें भक्तगण पूरी श्रद्धा और भक्ति से हिस्सा लेते हैं।

मध्यरात्रि पूजा की विधि एक और महत्वपूर्ण चरण है। रात के ठीक 12 बजे, भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को स्नान कराते हैं, जिसे ‘अभिषेक’ कहा जाता है। इसके बाद, भगवान के नये वस्त्र, आभूषण और फूलों से सजाया जाता है। पूजा में पंचामृत, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का प्रयोग होता है, जो भगवान को अर्पित की जाती है। इसके बाद, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के रूप में ‘मंगल आरती’ संपन्न की जाती है। इस दौरान, भक्तगण भगवान को झूले में झुलाते हैं और उनका स्वागत करते हैं।

इस प्रकार, मध्यरात्रि जन्मोत्सव के माध्यम से भक्तगण भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशियां मानते हैं और उन्हें अपनी भक्ति और प्रेम अर्पित करते हैं। यह अनुष्ठान न केवल श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है, बल्कि धर्म और संस्कृति की गहरी जड़ों को भी दर्शाता है।

भक्तों के विशेष आयोजन

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हिन्दू धर्मावलंबियों के बीच अत्यंत महत्वपूर्ण और उल्लासपूर्ण होता है। इस विशेष अवसर पर भक्तजन अलग-अलग प्रकार के आयोजन करते हैं, जिनमें मटकी फोड़ प्रतियोगिता, झांकियाँ, और नाट्य मंचन जैसे कार्यक्रम शामिल होते हैं। इन आयोजनों का मुख्य उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं और शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाना होता है।

मटकी फोड़ प्रतियोगिता, जिसे दही हांडी के नाम से भी जाना जाता है, श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप को समर्पित होती है। इस आयोजन में कईं टीमें एकत्र होकर एक उँची जगह पर बांधी गई मटकी को फोड़ने की कोशिश करती हैं। इस प्रतियोगिता में भाग लेने वालों को मिलकर काम करने, मुसीबतों का सामना करने और विजय प्राप्ति के लिए प्रयास करने की प्रेरणा मिलती है। यह प्रतियोगिता सामूहिकता और संगठन के गुणों को मज़बूत करती है।

इसके अलावा, झांकियाँ भी जन्माष्टमी के महत्वपूर्ण आयोजन का हिस्सा होती हैं। इन झांकियों में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की लीलाओं और घटनाओं का चित्रण किया जाता है। लोग इन झांकियों को देख कर भगवान के जीवन की शिक्षाओं को समझने और आत्मसात करने की कोशिश करते हैं। इन झांकियों का मुख्य आकर्षण श्रीकृष्ण का बालक स्वरूप, राधा-कृष्ण का रासलीला, और गोवर्धन पर्वत धारण की कथा होती है।

नाट्य मंचन भी इस पर्व का अहम हिस्सा होते हैं। विभिन्न नाट्य समूह भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कथाओं का मंचन करते हैं, जिससे लोग उनके जीवन की लीलाओं और शिक्षाओं का सजीव अनुभव करते हैं। इस प्रकार के आयोजनों से न केवल युवा श्रीकृष्ण की लीलाओं से अवगत होते हैं, बल्कि उनके जीवन से सीखने का अवसर भी प्राप्त करते हैं।

इस प्रकार, जन्माष्टमी के इन विशेष आयोजनों के माध्यम से श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत रखने की परंपरा को कायम रखा जाता है। यह न केवल भक्ति भावना को जागृत करता है, बल्कि सामूहिकता और संगठनता को भी प्रोत्साहित करता है।

व्रत पारण का समय और विधि

जन्माष्टमी व्रत के समापन का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे सही समय पर और उचित विधि से समाप्त करने पर ही व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। व्रत पारण का समय इस पर्व के धार्मिक महत्व को देखते हुए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन सूर्यास्त के बाद या फिर रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद पारण किया जाता है।

वर्तनिर्धारण के लिए पंचांग की सहायता ली जाती है, जिससे सटीक समय का निर्धारण होता है। पारण के समय का पालन धार्मिकता और अनुशासन के साथ करना चाहिए। व्रत पारण करते समय सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर उन्हें भोग अर्पित करना चाहिए। पारण के प्रारंभ में तुलसी के पत्तों का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।

व्रत पारण के दौरान और उसके बाद उपवास के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थ का चयन महत्वपूर्ण है। सामान्यतः फल, दूध, मेवा या सात्विक भोजन लेने की परंपरा है। विशेष ध्यान रखें कि पारण का भोजन हल्का और सुपाच्य हो, ताकि लंबे उपवास के बाद पेट पर अतिरिक्त भार न पड़े। इस दिन दही, चीनी, फल आदि का सेवन करना भी शुभ माना जाता है।

यदि व्रत पारण का समय और विधि सही से पालन की जाए तो यह व्रत करने वाले व्यक्ति के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यह धार्मिक अनुष्ठान न केवल आध्यात्मिक शुद्धिकरण में सहायक होता है, बल्कि मानसिक संतुलन और शांति का भी प्रतीक है। इस प्रकार, व्रत पारण एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है जो श्रद्धा और सेवा भावना से संपन्न किया जाता है।


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