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माँ ब्रह्मचारिणी : तपस्या और साधना का दिव्य स्वरूप

Pinki Mishra Sep 24, 2025 0

Table of Contents

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  • प्रस्तावना
  • माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
  • नाम का अर्थ
  • माँ ब्रह्मचारिणी की कथा
  • पूजन विधि
    • आवश्यक सामग्री
    • पूजन के चरण
  • माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र
    • बीज मंत्र
    • ध्यान मंत्र
  • माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से लाभ
  • धार्मिक महत्व
  • आधुनिक जीवन में माँ ब्रह्मचारिणी का संदेश
  • निष्कर्ष

प्रस्तावना

नवरात्रि के दूसरे दिन जिस देवी की उपासना की जाती है, वे हैं माँ ब्रह्मचारिणी। “ब्रह्मचारिणी” शब्द का अर्थ है – ब्रह्म का आचरण करने वाली। अर्थात जो तप, साधना और ब्रह्मचर्य में लीन रहती हैं। माँ दुर्गा का यह स्वरूप त्याग, तपस्या, संयम और साधना का प्रतीक है।

माँ ब्रह्मचारिणी का रूप अत्यंत तेजस्वी और शांति से युक्त है। वे हाथ में जपमाला और कमंडल धारण किए रहती हैं। उनका स्वरूप साधकों और तपस्वियों को यह संदेश देता है कि जीवन में सफलता और आत्मज्ञान के लिए तप, संयम और साधना अनिवार्य है।


माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

  • उनके दाहिने हाथ में जपमाला होती है।
  • बाएँ हाथ में वे कमंडल धारण करती हैं।
  • वे सदा साधना में लीन रहती हैं।
  • उनके चरणों में अद्भुत तेज और शांति का संचार होता है।
  • उनका वस्त्र सादा और तपस्विनी स्वरूप को दर्शाने वाला है।
  • उनका आभामंडल साधकों को अध्यात्म और आत्मबल की ओर आकर्षित करता है।

नाम का अर्थ

“ब्रह्मचारिणी” नाम दो शब्दों से मिलकर बना है –

  • ब्रह्म : सर्वोच्च सत्य, ज्ञान और तप।
  • चारिणी : आचरण करने वाली।

इस प्रकार, माँ ब्रह्मचारिणी का अर्थ है – “ब्रह्म में लीन रहने वाली” या “तप का आचरण करने वाली”।


माँ ब्रह्मचारिणी की कथा

देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। उन्होंने हजारों वर्षों तक केवल फल-फूल और जड़ी-बूटियों का सेवन किया। बाद में उन्होंने कठोर तप में अन्न-जल तक त्याग दिया और केवल वायु पर आश्रित रहीं।

उनकी कठोर साधना और अद्भुत तप से तीनों लोक हिल गए। देवताओं ने आकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि उनके तप का फल उन्हें अवश्य मिलेगा। अंततः उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।

इसी कारण उन्हें माँ ब्रह्मचारिणी कहा गया। वे तप, साधना और संयम का जीवंत स्वरूप हैं।


पूजन विधि

नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।

आवश्यक सामग्री

  • गंगाजल, अक्षत, पुष्प
  • रोली, चंदन, मौली
  • धूप-दीप, अगरबत्ती
  • मिश्री, शक्कर और पंचामृत
  • पुष्पमाला और नैवेद्य

पूजन के चरण

  1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल को शुद्ध करें और माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  3. दीप प्रज्वलित कर माँ का ध्यान करें।
  4. चंदन, अक्षत, पुष्प अर्पित करें।
  5. नैवेद्य के रूप में मिश्री या शक्कर अर्पित करें।
  6. मंत्र जप करें और आरती करें।

माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र

बीज मंत्र

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

ध्यान मंत्र

वन्दे तपस्विनीं देवीं तपःाराधनतत्पराम्।
कमण्डलु माला कराभ्यां दधतीं ब्रह्मचारिणीम्॥


माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से लाभ

  1. तप, संयम और आत्मबल की वृद्धि होती है।
  2. साधक के जीवन से आलस्य और भय समाप्त होता है।
  3. आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति प्रबल होती है।
  4. वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है।
  5. मानसिक शांति और धैर्य की प्राप्ति होती है।
  6. साधना करने वाले को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।

धार्मिक महत्व

माँ ब्रह्मचारिणी को तप, त्याग और संयम की देवी कहा गया है। नवरात्रि में उनकी पूजा करने से साधक को धैर्य, संयम और इच्छाशक्ति प्राप्त होती है। वे भक्तों को तपस्या और साधना की ओर प्रेरित करती हैं।


आधुनिक जीवन में माँ ब्रह्मचारिणी का संदेश

आज के समय में जब जीवन भौतिक सुख-सुविधाओं और प्रतिस्पर्धा में उलझा हुआ है, तब माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि –

  • सफलता पाने के लिए तप, परिश्रम और धैर्य अनिवार्य हैं।
  • संयम और आत्मनियंत्रण जीवन को श्रेष्ठ बनाते हैं।
  • मन की शक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति है।
  • आत्मविश्वास और साधना से असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं।

निष्कर्ष

माँ ब्रह्मचारिणी नवरात्रि के दूसरे दिन पूजी जाती हैं। वे साधना, संयम और तपस्या का प्रतीक हैं। उनकी उपासना करने से भक्त को आत्मबल, इच्छाशक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है। जो भी व्यक्ति मन से उनकी पूजा करता है, उसके जीवन में धैर्य, शांति और सफलता आती है।

Pinki Mishra

Website: http://mahakaltemple.com

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