✨ परिचय
माँ कामाख्या देवी का मंदिर भारत के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर असम राज्य के गुवाहाटी शहर में नीलाचल पर्वत पर स्थित है। माँ कामाख्या को “कामरूप कामाख्या” भी कहा जाता है। यह स्थल न केवल हिंदू धर्म की दृष्टि से, बल्कि तांत्रिक साधना, योग, अध्यात्म और स्त्री-शक्ति की प्रतीक उपासना का भी केंद्र है।
भारत में जितने भी शक्तिपीठ हैं, उनमें से कामाख्या शक्तिपीठ को सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली माना जाता है। यहाँ देवी की योनि (जननेंद्रिय) की पूजा होती है, जो स्त्री शक्ति और सृजन का प्रतीक है।
🕉 पौराणिक कथा और उत्पत्ति
कामाख्या मंदिर का संबंध सती और भगवान शिव की कथा से जुड़ा हुआ है।
पौराणिक कथा के अनुसार —
एक बार राजा दक्ष प्रजापति, जो सती के पिता थे, ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती अपने पति का अपमान सह नहीं सकीं और उन्होंने उसी यज्ञ-कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
जब भगवान शिव को इसका समाचार मिला तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को उठाकर तांडव करना शुरू किया। ब्रह्मांड में भयंकर हलचल मच गई। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को ५१ टुकड़ों में विभाजित कर दिया।
जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्ति पीठों की स्थापना हुई।
माँ कामाख्या का स्थान वह है जहाँ देवी की योनि गिरी थी। इसी कारण यहाँ देवी के उस रूप की पूजा की जाती है जो सृजन-शक्ति और मातृत्व का प्रतीक है।
🌸 कामाख्या नाम की उत्पत्ति
‘कामाख्या’ शब्द का अर्थ है — काम (इच्छा) और अख्या (जन्म देने वाली)।
अर्थात वह देवी जो समस्त इच्छाओं की उत्पत्ति का स्रोत हैं।
यह भी कहा जाता है कि कामदेव ने यहाँ भगवान शिव के क्रोध से जले अपने शरीर को पुनः प्राप्त किया था। इस कारण देवी को “कामदेव की अधिष्ठात्री देवी” भी कहा गया है।

🛕 मंदिर का स्थापत्य और संरचना
कामाख्या मंदिर की वास्तुकला अनोखी है। यह मंदिर नीलाचल पर्वत की चोटी पर स्थित है, जहाँ से ब्रह्मपुत्र नदी का भव्य दृश्य दिखाई देता है।
मंदिर का निर्माण १६वीं शताब्दी में कोच वंश के राजा नरनारायण और उनके सेनापति चिलाराय द्वारा कराया गया था।
मंदिर का मुख्य भाग गर्भगृह है, जहाँ देवी का कोई मूर्ति रूप नहीं है।
यहाँ एक प्राकृतिक चट्टान की दरार है, जिसे लाल कपड़े से ढका गया है और जिसके भीतर सदा जल रिसता रहता है।
यह स्थान देवी की योनि का प्रतीक है।
भक्तजन उसी स्थान पर जल और फूल अर्पित करते हैं।
मंदिर के ऊपर गोल गुम्बदनुमा शिखर है, जिस पर सुंदर नक्काशी की गई है। इसके चारों ओर छोटे-छोटे मंदिर हैं जो भगवान विष्णु, शिव, गणेश, और अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं।
🔱 धार्मिक महत्व
कामाख्या मंदिर का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है।
यह मंदिर ५१ शक्ति पीठों में से एक प्रमुख पीठ है। यहाँ देवी की सृजन-शक्ति, कामना और तपस्या — तीनों का संगम माना जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार, यह स्थान तांत्रिक साधना का सर्वोच्च केंद्र है।
देश-विदेश से तांत्रिक, योगी और साधक यहाँ साधना करने आते हैं।
यहाँ देवी की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है, जिसमें पंचमकार (मदिरा, मांस, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन) जैसी प्रतीकात्मक वस्तुओं का उपयोग होता है — हालाँकि आज यह केवल सांकेतिक रूप में किया जाता है।
🌺 अंबुवाची मेला — देवी के मासिक धर्म का उत्सव
कामाख्या मंदिर का सबसे प्रसिद्ध उत्सव है — अंबुवाची मेला।
यह उत्सव हर वर्ष जून महीने में आयोजित होता है।
कहा जाता है कि इस समय माँ कामाख्या तीन दिनों तक ऋतु-मती (मासिक धर्म) होती हैं।
इन तीन दिनों में मंदिर के द्वार बंद रहते हैं।
चौथे दिन देवी का स्नान और पूजा कर मंदिर फिर से खोला जाता है।
इन तीन दिनों में नीलाचल पर्वत पर लाखों श्रद्धालु आते हैं।
साधक यहाँ विशेष तांत्रिक साधनाएँ करते हैं।
यह उत्सव स्त्री की जैविक प्रक्रिया को पवित्रता और सृजन-शक्ति के रूप में स्वीकार करता है — जो भारतीय संस्कृति की गहराई और सम्मान को दर्शाता है।
🔮 तांत्रिक परंपरा और साधना
कामाख्या मंदिर तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है।
यहाँ की तांत्रिक परंपरा हजारों वर्षों पुरानी मानी जाती है।
तांत्रिक मान्यताओं के अनुसार, नीलाचल पर्वत पर १० महाविद्याओं का निवास है —
- तारा
- भुवनेश्वरी
- छिन्नमस्ता
- त्रिपुरसुंदरी
- भैरवी
- बगलामुखी
- धूमावती
- मातंगी
- कमला
- और सबसे ऊपर कामाख्या देवी स्वयं।
इन सभी महाविद्याओं के छोटे मंदिर कामाख्या धाम परिसर में हैं।
यहाँ साधक तंत्र, ध्यान, योग और देवी उपासना के माध्यम से आत्मिक सिद्धि प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
🪔 मंदिर का इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार, मूल मंदिर का निर्माण प्राचीन गुप्त काल (8वीं शताब्दी) में हुआ था।
बाद में यह मंदिर विध्वंस के दौर से गुज़रा और १६वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित किया गया।
कोच वंश के राजा नरनारायण और उनके भाई चिलाराय ने इसका पुनर्निर्माण कराया।
तब से लेकर आज तक यह मंदिर असम की संस्कृति और श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है।
🌄 सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
माँ कामाख्या केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि असम की सांस्कृतिक पहचान भी है।
यहाँ हर धर्म, जाति और वर्ग के लोग दर्शन करने आते हैं।
कामाख्या देवी स्त्री की शक्ति, सम्मान और सृजन की प्रतीक हैं।
असम की लोककथाओं, गीतों और नृत्यों में माँ कामाख्या की महिमा का वर्णन होता है।
यहाँ के स्थानीय लोग देवी को “माँ कामरूपा” कहकर पुकारते हैं।
🚩 यात्रा और दर्शन
कामाख्या मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
पहाड़ी मार्ग पर सड़क, सीढ़ियाँ और वाहनों की सुविधा उपलब्ध है।
मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए भोजनालय, धर्मशाला, आवास और पार्किंग की व्यवस्था है।
दर्शन का समय:
- सुबह 5:30 से दोपहर 1:00 बजे तक
- दोपहर 2:30 से शाम 5:30 बजे तक
श्रावण मास, दुर्गा पूजा, और नवरात्र के समय यहाँ विशेष उत्सव होते हैं।
🌹 कामाख्या धाम और स्त्री-शक्ति का संदेश
कामाख्या धाम का सबसे बड़ा संदेश है — स्त्री का सम्मान।
जहाँ सामान्य समाज में मासिक धर्म को अशुद्ध माना गया, वहीं कामाख्या मंदिर में देवी के मासिक धर्म की पूजा होती है।
यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति ने स्त्री को केवल उपास्य रूप में ही नहीं, बल्कि जीवन और सृजन की जड़ के रूप में देखा है।
यह मंदिर इस विचार का प्रतीक है कि शक्ति के बिना शिव भी निष्प्राण हैं।
📿 निष्कर्ष
माँ कामाख्या देवी मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना, नारीत्व और रहस्य का संगम है।
यहाँ की हर ईंट, हर दीपक, हर फूल — देवी की ऊर्जा से ओतप्रोत लगता है।
नीलाचल पर्वत पर स्थित यह पावन धाम भारत की शक्ति-साधना की जड़ है।
यह हमें याद दिलाता है कि जब तक हम स्त्री को देवी मानते हैं, तब तक सभ्यता जीवित रहती है।
माँ कामाख्या के चरणों में श्रद्धा के साथ नमन —
जय माँ कामाख्या। 🌺











Leave a Reply