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भारतीय त्योहार

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 2024

Mahakal Aug 13, 2024 0

Table of Contents

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  • रक्षाबंधन का महत्व
  • राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 2024
  • रक्षाबंधन पर पूजा विधि
  • भाई-बहन के लिए उपहार सुझाव
  • परंपरागत उपहारों के सुझाव
  • आधुनिक उपहारों के सुझाव
  • अनुभवात्मक उपहार
  • रक्षाबंधन से जुड़ी कथाएँ और इतिहास
  • रक्षाबंधन के अवसर पर पारंपरिक भोजन
  • रक्षाबंधन का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

रक्षाबंधन का महत्व

रक्षाबंधन भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। इस पर्व की विशेषता यह है कि इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र और खुशी की कामना करती हैं। राखी, जो एक धागे का रूप है, भाई-बहन के बीच अटूट बंधन और आपसी स्नेह का प्रतीक है। इस पारंपरिक धागे में न केवल बहन की शुभकामनाएं बल्कि उनके प्रति स्नेह और समर्पण का भी भाव होता है।

रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन की रिश्ते की गहराई और महत्ता को मान्यता दी जाती है। इस त्योहार का उद्देश्य न केवल भाइयों को बहनों की रक्षा करने के प्रति संवेदनशील बनाना है बल्कि बहनों की भी भाइयों के प्रति स्नेहपूर्ण भावना को प्रकट करना है। इस दिन भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनके सुरक्षित जीवन की कामना करते हैं।

यह त्योहार आपसी स्नेह और सम्मान का प्रतीक है, और इसे पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान परिवार के सदस्य और करीबी रिश्तेदार एकत्रित होते हैं और मिलकर इस पवित्र पर्व का उत्सव मनाते हैं। रक्षाबंधन केवल भावनात्मक बंधन को मजबूत करने का अवसर नहीं, बल्कि पारिवारिक एकता और परंपराओं को जीवित रखने का भी माध्यम है।

राखी के धागे में भाई-बहन के आपसी प्रेम का गहरा महत्व छिपा होता है। यह त्योहार हमें यह याद दिलाता है कि स्नेह, आदर और कर्तव्य का बंधन किसी भी धागे से ज्यादा मजबूत हो सकता है। इसलिए रक्षाबंधन, भारतीय सांस्कृतिक विरासत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और भाई-बहन के अटूट संबंधों को संजोने का अवसर प्रदान करता है।

2024 में रक्षाबंधन का त्योहार पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस वर्ष, यह महत्वपूर्ण पर्व 19 अगस्त को पड़ेगा, जो कि सोमवार का दिन है। रक्षाबंधन पारंपरिक रूप से श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जिसे रक्षा या सुरक्षा का संदेश देने वाली राखी बहनों द्वारा अपने भाई की कलाई पर बांधी जाती है। यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम और बंधन का प्रतीक है, जो सदियों से भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

पंचांग के अनुसार, 2024 में श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त की सुबह 07:39 बजे से आरंभ होकर 20 अगस्त की सुबह 09:20 बजे तक रहेगी। अतः रक्षाबंधन 19 अगस्त को मनाया जाएगा। इस तिथि और दिन की जानकारी से लोगों को अपनी धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों की तैयारी करने में आसानी होगी। विभिन्न ज्योतिष और धार्मिक दृष्टिकोण से सही मुहूर्त के अनुसार राखी बांधने का अनुष्ठान किया जाता है, जिससे त्योहार के पारंपरिक और संस्कृतिक महत्त्व को और अधिक बढ़ावा मिलता है।

रक्षाबंधन का यह दिन विशेष होता है क्योंकि इसमें बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुखद जीवन की कामना करती हैं। भाइयों द्वारा अपनी बहनों को उपहार देने की परंपरा भी इस दिन को और उत्कृष्ट बनाती है। इस प्रकार यह पर्व केवल राखी बांधने का ही नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूती देने का भी अवसर प्रदान करता है।

इस वर्ष की तिथि और दिन की जानकारी पहले से ज्ञात होने के कारण, लोग अपने कार्यों की योजना को समुचित रूप से प्रबंधित कर सकेंगे, जिससे हर कोई इस पर्व का उत्कृष्ट आनंद ले सकेगा।

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 2024

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 2024 को लेकर उत्सुकता और महत्व दोनों ही अत्यधिक होते हैं। शुभ घड़ी में राखी बांधना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह समय भाई और बहन के रिश्ते में आशीर्वाद और खुशियों का संचार करता है। इस वर्ष, रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा को आती है, जो कि राखी बांधने के लिए सबसे पवित्र दिन होता है।

शुभ मुहूर्त का निर्धारण करते समय सबसे पहले भद्रा काल का ध्यान रखना अत्यावश्यक है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भद्रा में किसी भी प्रकार की शुभ कार्य वर्जित होते हैं, क्योंकि यह समय अशुभ माना जाता है। 2024 में भी, भद्रा काल से मुक्ति के पश्चात ही राखी बांधने का शुभ मुहूर्त आरंभ होगा। इसके अनुसार, 19 अगस्त को दिन की शुरुआत में भद्रा रहने की संभावना है जो रात 10:15 पर समाप्त होगी।

भद्रा काल समाप्त होने के बाद ही राखी बांधने का शुभ मुहूर्त आरंभ होगा। इस वर्ष राखी का शुभ मुहूर्त दिनभर में कुछ ही घंटों के लिए रहेगा। इसके अलावा, पूर्णिमा तिथि का ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है, जो कि सुबह 10:45 बजे शुरू होगी और अगले दिन 20 अगस्त 2024 को सुबह 7:30 बजे समाप्त होगी। इन सारी परिगणनाओं और ज्योतिषीय मान्यताओं के आधार पर सबसे उत्तम समय रात 10:15 बजे से लेकर 12:45 बजे तक का होगा।

ये सभी व्यापक जानकारी बहन और भाई के आपसी प्रेम और रिश्ते को मजबूती प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण होती है। परिवार के सभी सदस्यों को शुभ मुहूर्त की जानकारी रखना और नियमानुसार राखी बांधना अति आवश्यक है ताकि शुभता और समृद्धि का संचार हो सके।

रक्षाबंधन पर पूजा विधि

रक्षाबंधन, जिसे राखी के नाम से भी जाना जाता है, भाई-बहन के पवित्र बंधन का पर्व है। इस दिन भाई और बहन एक दूसरे के प्रति अपने स्नेह और सुरक्षा का संकल्प लेते हैं। पूजा विधि का अनुसरण करने से यह पर्व और भी शुभ और पवित्र बनता है।

रक्षाबंधन के दिन पूजा की शुरुआत सबसे पहले एक साफ और पवित्र स्थान पर पूजा की थाली तैयार करने से होती है। पूजा की थाली में आवश्यक सामग्री में राखी, चावल, कुमकुम, दीपक, मिठाई, फूल, नारियल और कुछ पैसे होते हैं। ये सारी सामग्री भाई की लम्बी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए आवश्यक मानी जाती है।

पूजा विधि की शुरुआत स्नान करके और स्वच्छ वस्त्र धारण करके की जाती है। फिर एक चौकी पर वस्त्र बिछाकर भगवान गणेश और भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित की जाती है। उसके बाद दीपक जलाकर भगवान का ध्यान करते हुए पूजा शुरू की जाती है। पूजा के दौरान कुलीन मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है। “ॐ गणेशाय नमः” और “ॐ विष्णवेनमः” इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।

इसके बाद बहन अपने भाई की आरती करती है और तिलक लगाकर उसके माथे पर कुमकुम से स्वस्तिक बनाती है। भाई को चावल, फूल और मिठाई अर्पित की जाती है। फिर भाई की कलाई पर राखी बाँधी जाती है और उसकी लम्बी उम्र, खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हुए प्रार्थना की जाती है।

पूजा समाप्त होने के बाद भाई बहन को उपहार और पैसे देता है, और बहन उसका आशीर्वाद लेती है। यह पूरी प्रक्रिया न केवल धार्मिक, बल्कि भावनात्मक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होती है, जो भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत बनाती है। रक्षाबंधन की पूजा विधि का पालन करने से यह पर्व और भी मंगलमय बनता है।

भाई-बहन के लिए उपहार सुझाव

रक्षाबंधन का पावन पर्व भाई-बहन के रिश्ते की अनूठी मिठास का प्रतीक है। इस विशेष अवसर पर एक-दूसरे को उपहार देने का रिवाज़ पुराना है और जब बात उपहारों की हो तो हर किसी की सोच अलग होती है। पारंपरिक उपहारों से लेकर आधुनिक उपहारों तक, भाई-बहनों के बीच के इस अनोखे संबंध को और भी खास बनाने के लिए यहां कुछ उपहार सुझाव दिए जा रहे हैं।

परंपरागत उपहारों के सुझाव

पारंपरिक उपहार की बात करें, तो सबसे पहले आता है रेशमी राखी और मिठाइयाँ। मिठाइयों के अलावा पूजा की थाली, रुद्राक्ष माला, भगवान की मूर्तियां, और धार्मिक किताबें भी भाई-बहन के आपसी विश्वास को और मजबूत करती हैं। पारंपरिक पहनावे और घड़ियां भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। ये उपहार भाई-बहन दोनों के लिए उपयुक्त हैं और इनका आदान-प्रदान त्योहार की पवित्रता को बढ़ाता है।

आधुनिक उपहारों के सुझाव

समय के साथ उपहार देने की परंपरा में नए तत्व भी जुड़ गए हैं। आधुनिक उपहारों में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स जैसे स्मार्टफोन, फिटनेस बैंड्स और ब्लूटूथ हेडफोन्स काफी लोकप्रिय हैं। कस्टमाइज्ड गिफ्ट्स भी आजकल का एक ट्रेंड है – जैसे खुद की फोटो वाली कॉफी मग, टी-शर्ट, या फिर लॉकिट जिनमें भाई-बहन की फोटो हो। यह न केवल आपके रिश्ते को खास बनाएंगे बल्कि उन्हें यादगार भी बना देंगे।

अनुभवात्मक उपहार

अन्तत: इतना कहना पर्याप्त नहीं होगा कि रक्षाबंधन के दौरान ऐसा उपहार चुने जो भाई-बहन के आपसी प्यार और समझ को दर्शाता हो। अनुभवात्मक उपहार, जैसे किसी स्पा या सैलून का वाउचर, मूवी टिकट्स, या फिर एक बढ़िया डिनर का प्लान, भी एक शानदार विचार हो सकता है। यह उपहार न केवल उन्हें खुशी देंगे बल्कि उनके लिए एक यादगार अनुभव भी साबित होंगे।

चाहे वह पारंपरिक हो या आधुनिक, उपहार हमेशा मन की भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे सुंदर माध्यम होते हैं। इसलिए अपने भाई या बहन के लिए सही उपहार पसंद कर, इस रक्षाबंधन को और भी विशेष बनाएं।

रक्षाबंधन से जुड़ी कथाएँ और इतिहास

रक्षाबंधन, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में गहरी जड़े हुए अनेक कथानों और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। इस त्योहार का उत्सव भाई-बहन के प्रेम और रक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टियों से, रक्षाबंधन के अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकालय और कथाएँ हैं जो इस पर्व को और भी खास बनाती हैं।

पौराणिक कथाओं में, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कहानी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि राजा बलि ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए भगवान विष्णु का तपस्या की, जिससे भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया। मगर इसके बाद भगवान विष्णु को अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी से दूर जाना पड़ा। देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बना लिया और बदले में भगवान विष्णु को वापस लौटाने का आग्रह किया। राजा बलि ने इसे स्वीकार करते हुए भगवान विष्णु को मुक्त कर दिया। इस प्रकार, रक्षाबंधन ने देवी लक्ष्मी और राजा बलि के रिश्ते में एक नई पहचान दी।

इतिहास में, रानी कर्णावती और मुग़ल सम्राट हुमायूँ के बीच की कहानी भी रक्षाबंधन की महत्ता को दर्शाती है। चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल साम्राज्य के साम्राज्ञी हुमायूँ को राखी भेजकर अपने राज्य की रक्षा का अनुरोध किया था। हुमायूँ ने इसे स्वीकार किया और अपनी सेना के साथ चित्तौड़ पहुँच कर्णावती और उनके राज्य की रक्षा की। इस घटना ने रक्षाबंधन के त्योहार को सामाजिक एकता और परस्पर विश्वास का प्रतीक बनाया।

इन कथाओं से यह स्पष्ट होता है कि रक्षाबंधन सिर्फ एक पारिवारिक त्योहार नहीं है, बल्कि इसमें धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी गहरा समाहित है। त्योहार की यह महत्वपूर्ण कथाएँ और घटनाएँ हमें सिखाती हैं कि यह पर्व केवल राखी बांधने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें हमारी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं की अभिव्यक्ति है।

रक्षाबंधन के अवसर पर पारंपरिक भोजन

रक्षाबंधन जैसे महत्वपूर्ण पर्व पर परिवार और मित्रों के साथ पारंपरिक खाने का आनंद उठाना एक विशेष अनुभव होता है। इस पर्व पर कई प्रकार की मिठाइयाँ, नमकीन और विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जो हर उम्र के लोगों द्वारा पसंद किए जाते हैं। इन परंपरागत खाद्य पदार्थों की विशेषताओं और महत्व को समझना भी महत्वपूर्ण है।

रक्षाबंधन के अवसर पर तैयार की जाने वाली मिठाइयों में ‘लड्डू’, ‘बरफी’, ‘गुजिया’, और ‘कलाकंद’ का प्रमुख स्थान है। ये मिठाइयाँ बनाने में सरल हैं और स्वाद में लाजवाब होती हैं। सत्तू के लड्डू, बेसन के लड्डू और नारियल की बरफी जैसी मिठाइयाँ विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। इसके साथ ही गुलाब जामुन और रसगुल्ला भी काफी पसंद की जाती हैं। मिठाइयाँ न केवल परिवार के सदस्य एक-दूसरे को बांटते हैं, बल्कि इस पर्व की मिठास भी बढ़ाते हैं।

मिठाइयों के अलावा, रक्षाबंधन के दिन विभिन्न प्रकार के नमकीन पकवान भी बनाए जाते हैं। ‘समोसा’, ‘कचौरी’, ‘मठरी’, और ‘नमक पारे’ जैसी नमकीन खाद्य पदार्थ इस पर्व के प्रमुख अंग हैं। इन व्यंजनों की तैयारी में खास मसालों और सामग्री का प्रयोग होता है, जिससे इनके स्वाद में विविधता आती है। समोसे और कचौरी के साथ पुदीना और इमली की चटनी का संयोजन किसी भी भोजन को यादगार बना देता है।

रक्षाबंधन के पारंपरिक भोजन में ‘पूरी’, ‘छोले’, ‘आलू की सब्जी’, और ‘राजमा चावल’ जैसी मुख्य व्यंजन भी होते हैं। इन्हें बनाने की प्रक्रिया सरल होते हुए भी स्वाद में बेहतरीन होते हैं। पर्व के आनंद को बढ़ाने के लिए परिवार के सभी सदस्य मिलकर इन विशेष खाद्य पदार्थों को तैयार करते हैं।

रक्षाबंधन पर पारंपरिक खाद्य पदार्थ न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि इनसे जुड़ी परंपराएं और रीति-रिवाज भी हमारे सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। इस प्रकार के व्यंजन न केवल त्योहार की खुशी को दुगना कर देते हैं, बल्कि परिवार और संबंधों में भी मिठास घोल देते हैं।

रक्षाबंधन का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

रक्षाबंधन, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है, भारतीय समाज और संस्कृति में अत्यधिक महत्व रखता है। यह त्योहार न केवल भाई-बहन के बीच के अटूट बंधन को प्रकट करता है, बल्कि परिवारों में भी नजदीकी और प्रेम को बढ़ावा देता है। रक्षाबंधन के दिन, बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र व खुशी की कामना करती हैं। भाई अपनी बहनों की सुरक्षा का वचन देते हैं, जो कि इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है।

समाज में इस त्योहार के चलते पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं। अनेक परिवार, जो शायद दूरी या कामकाज के कारण साल भर जुड़ नहीं पाते, इस दिन एकत्रित होते हैं। यह पुनर्मिलन का अवसर होता है, जो परिवार के सदस्यों के बीच नए जोश और उमंग का संचार करता है। रक्षाबंधन के अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो समाज में समरसता और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देती हैं।

रक्षाबंधन का सांस्कृतिक प्रभाव भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह उत्सव हिंदू संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है और यह सांस्कृतिक धरोहर को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक माध्यम है। इस दिन लोग परंपरागत कपड़े पहनते हैं, विशेष प्रकार के व्यंजन बनाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। यह सब सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखता है। त्योहार की यह परंपरा न केवल भारत में बल्कि भारतीय प्रवासियों के बीच भी बड़े स्तर पर मनाई जाती है, जिससे भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान बनी रहती है।


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